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जिंदगी में तो सभी प्यार किया करते हैं, मैं तो मरकर भी मेरी जान तुम्हें चाहूंगा
काम ऐसा करो कि लोग आपको मरने के बाद भी याद करें. इंसान तो मर जाता है उसका शरीर भी खत्म हो जाता है पर खत्म नहीं होती तो वह हैं यादें और इंसान की बोली. कुछ लोग मरकर भी अपनी आवाज और अपनी बातों के लिए अमर हो जाते हैं और इन्हीं में गिने जाएंगे मेहदी हसन. आज मेहदी हसन हमसे जुदा हो गए. उनकी आवाज को जिन्होंने लाइव सुना है वह अपनी पूरी जिंदगी उस लम्हें को याद करेंगे जिसमें उन्होंने मेहदी हसन की सुरीली आवाज में गजल को सुना, वह उस अध्याय के हिस्सा हैं जो खुद मेहदी हसन में समाया हुआ है.
गजल गायिकी के धुरंधर को अब उनके चाहने वाले भले ही लाइव ना सुन पाएं, लेकिन उनकी आवाज उनकी गाई गजलों के माध्यम से हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेगी. मशहूर गजल गायक मेहदी हसन का बुधवार को कराची के एक अस्पताल में निधन हो गया है. उनके निधन से एक बार फिर गजल गायिकी में सूनापन सा छा गया है. मेहदी हसन वह शख्स थे जिन्हें हिंदुस्तान व पाकिस्तान में बराबर का सम्मान मिलता था. इन्होंने अपनी गायिकी से दोनों देशों को जोड़े रखा था.
राजस्थान के झुंझुनूं जिले के लूणा गांव में 18 जुलाई, 1927 को जन्में हसन का परिवार संगीतकारों का परिवार रहा है. हसन के अनुसार कलावंत घराने में उनसे पहले की 15 पीढि़यां भी संगीत से ही जुड़ी हुई थीं. कहते हैं ना कि स्कूल के पहले बच्चा अपने घर में ही प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर लेता है, वैसे ही हसन ने भी अपने पिता व संगीतकार उस्ताद अजीम खान व चाचा उस्ताद इस्माइल खान से संगीत की प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की थी. भारत-पाक बंटवारे के बाद उनका परिवार पाकिस्तान चला गया. वहा उन्होंने कुछ दिनों तक एक साइकिल दुकान में काम किया और बाद में मोटर मेकैनिक का भी काम कर लिया, लेकिन संगीत को लेकर उनके दिल में जज्बा व जुनून था वह कभी कम नहीं हुआ.
1950 का दौर उस्ताद बरकत अली, बेगम अख्तर, मुख्तार बेगम जैसों का था, जिसमें मेहंदी हसन के लिए अपनी जगह बना पाना सरल नहीं था. एक गायक के तौर पर उन्हें पहली बार 1957 में रेडियो पाकिस्तान में बतौर ठुमरी गायक पहचान मिली. इसके बाद मेहदी हसन ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. फिर क्या था फिल्मी गीतों की दुनिया में व गजलों के समुंदर में वह छा गए.
गौरतलब है कि 1957 से 1999 तक सक्रिय रहे मेहदी हसन ने गले के कैंसर के बाद पिछले 12 सालों से गाना लगभग छोड़ ही दिया था. उनकी अंतिम रिकॉर्डिग 2010 में सरहदें नाम से आई जिसमें फरहत शहजाद ने अपना लेख दिया.
तेरा मिलना बहुत अच्छा लगे है, वर्ष 2009 में इस गाने की रिकार्डिग पाकिस्तान में की गई. दूसरी ओर उसी ट्रैक को सुनकर वर्ष 2010 में लता मंगेशकर ने अपनी रिकॉर्डिग मुंबई में शुरू कर दी. इस तरह से दोनों का एक युगल अलबम तैयार हो गया.
मेहदी हसन ने अपनी गायिकी से गजल की दुनिया में एक अलग ही पहचान बना रखी थी. उन्हें अपनी गायकी की वजह से संगीत की दुनिया में कई सम्मान प्राप्त हुए हैं. हसन की हजारों गजलें कई देशों में जारी हुईं. भले ही हसन आज हमारे बीच नहीं रहे लेकिन पिछले 40 साल से भी अधिक समय से संगीत की दुनिया में गूंजती शहंशाह-ए-गजल की आवाज की विरासत संगीत की दुनिया को हमेशा रौशन करती रहेगी.
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