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Madhav Sadashiv Golwalkar
अकसर हम जब भी आरएसएस का नाम लेते हैं तो हमारे सामने एक कट्टर हिंदूवादी संगठन की छवि उभर कर आती है. कई तथाकथित बुद्धिजीवी इस पर प्रतिबंध लगाने करने की मांग करते हैं और कहते हैं कि धर्मनिरपेक्ष देश में ऐसे धर्म-विशेष संगठन देश के लिए अच्छे नहीं हैं. लेकिन आप जरा सोच कर देखिए कि क्या अपने धर्म और जाति की रक्षा करना और उसे बढ़ावा देना कोई गलत कार्य है.
Madhav Sadashiv Golwalkar and RSS
गुरु गोलवलकर ने ना सिर्फ आरएसएस को बड़ी ऊंचाइयों पर पहुंचाया बल्कि उन्होंने देश सेवा के लिए भी बहुत काम किया. अब यह तो सिर्फ राजनीति है कि गुरु गोलवलकर को कभी किसी बड़े सम्मान जैसे पद्मश्री, पद्म विभूषण आदि से अलंकृत नहीं किया गया. लेकिन गुरु गोलवलकर इन सभी पुरस्कारों से ऊपर हैं. जिस समय पाकिस्तान में लाखों हिंदू कठिनाई में फंसे थे उस समय गोलवलकर उनके लिए मसीहा बनकर उभरे. इस मसीहा को किसी अवार्ड या पुरस्कार में नहीं बांधा जा सकता.
20वीं सदी में भारत में अनेक गरिमायुक्त महापुरुष हुए हैं परन्तु श्रीगुरुजी उन सब से भिन्न थे, क्योंकि उन जैसा हिन्दू जीवन की आध्यात्मिकता, हिन्दू समाज की एकता और हिन्दुस्थान की अखण्डता के विचार का पोषक और उपासक कोई अन्य न था. श्रीगुरुजी की हिन्दू राष्ट्र निष्ठा असंदिग्ध थी. उनके प्रशंसकों में उनकी विचारधारा के घोर विरोधी कतिपय कम्युनिस्ट तथा मुस्लिम नेता भी थे.
Profile of Madhav Sadashiv Golwalkar
गुरु गोलवलकर का पूरा नाम माधव सदाशिव गोलवलकर था. फरवरी 1906 में जन्में गोलवलकर ने 21 जून, 1940 को आरएसएस के सरसंघचालक की जिम्मेदारी संभाली. बचपन में गंभीर आर्थिक परेशानियों के बाद भी गुरुजी बेहद प्रतिभाशाली थे. 16 अगस्त, सन् 1931 को श्री गुरुजी ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राणि-शास्त्र विभाग में निदर्शक का पद संभाल लिया.
1941 में डा. हेगडेवार जी की मृत्यु के बाद उन्हें दूसरे सरसंघचालक की भूमिका मिली. 1941 के बाद का समय इतिहास की नजर से सबसे अहम था. भारत की स्वतंत्रता मिलने से लेकर गांधीजी की हत्या तक कई बार संघ पर प्रतिबंध लगे लेकिन इन सब के बीच संघ ने देश में अपनी जड़ें फैलाना जारी रखा और देखते ही देखते राष्ट्रवादी हिंदुत्व की यह लहर देश भर में फैल गई.
विश्व हिंदू परिषद्, विवेकानंद शिला स्मारक, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्, भारतीय मजदूर संघ, वनवासी कल्याण आश्रम, शिशु मंदिरों आदि विविध सेवा संस्थाओं के पीछे श्री गुरुजी की ही प्रेरणा रही है.
समय समय पर सत्तारूढ़ राजनीतिज्ञों ने संघ की छवि को खराब करने की कोशिश की पर गुरुजी के नेतृत्व में संघ ने कभी घुटने नहीं टेके. गुरु गोलवलकर ने हिंदू धर्म को फैलाने के लिए जहां कई कदम उठाए वहीं उन्होंने कभी भी किसी अन्य धर्म की बुराई या ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे किसी अन्य धर्म की भावनाओं को आघात पहुंचे.
Death of Madhav Sadashiv Golwalkar
05 जून, 1973 को नागपुर में गुरु गोलवलकर की कैंसर के कारण मृत्यु हो गई. गुरुजी तो आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन फिर भी उनके विचारों और दिखाए गए पथ पर संघ आज भी चल रहा है और निरंतर अग्रसर है.
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