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International Day of Innocent Children Victims of Aggression

Special Days
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खिलने से पहले ही मुरझाता ये बचपन

ये शोषित ये कुंठित ये अभिशप्त बचपन



उपरोक्त दो लाइनें एक कविता से ली गई हैं. इन दो लाइनों में ही आप आज के समाज में बच्चों की स्थिति का अनुमान लगा सकते हैं. हो सकता है कि बड़े या मध्यम वर्गीय परिवार में रहने वाले बच्चों की स्थिति आपको सही लगे लेकिन हर हंसते हुए बच्चे के चेहरे के पीछे आज कई दर्द भी छुपे हैं. पढ़ाई में अच्छे नंबर लाने का दबाव, पारिवारिक कलह, किसी के द्वारा यौन शोषण जैसे अनेक कारणों की वजह से आज अच्छे घरों के बच्चे भी कुंठित रहते हैं और ऐसे में हमें गरीब तबके के बच्चों के बारे में तो अपनी सोच को और भी अधिक गहराई देने की जरूरत है.


SexualAbuseConvention_en-lottesxl_abuse-1सीमा नई दिल्ली के ओखला झुग्गी झोपड़ी इलाके में रहती है. दो साल पहले अपने माता-पिता के साथ वह दिल्ली पढ़ने के मकसद से आई थी लेकिन उसके घरवाले बहुत गरीब थे. पिता सब्जी बेचते थे और मां अक्सर बीमार रहती थी. घर की हालत बहुत बेकार थी. इसी दौरान सीमा को एक दिन घर पर अकेला देख कुछ मनचले लड़कों ने उसके साथ कुकर्म किया, नतीजन सीमा गर्भवती हो गई. सीमा ने जब यह बात अपनी मां को बताई तो पहले तो उसकी मां ने उसकी खूब पिटाई की फिर उन लड़कों द्वारा पैसा लेकर अपना मुंह बंद कर लिया. उसकी मां ने उसके पिता को भी मना लिया. आज हालात यह हैं कि जब भी उन लड़कों की वासना जगती है वह उसकी मां को पैसे देकर उसकी बेटी के साथ मुंह काला करते हैं. यह सब इसलिए हो रहा है कि क्यूंकि एक तो सीमा के मां-बाप ही उसे न्याय नहीं दिलाना चाहते दूसरा सीमा मार और असहनीय पीड़ा को सहकर भी चुप रहने को मजबूर है.


यह तो सिर्फ एक कहानी है. ऐसी तमाम कहानियां हैं जहां आपको बचपन की रंगीली दुनिया काली दुनिया में बदलती दिखेगी. बचपन में किए जाने वाले जुल्मों का असर अकसर युवा अवस्था तक दिखाई देता है. जिन बच्चों को बचपन में सही नसीहत और राह नहीं दिखाई जाती उनके लिए युवा अवस्था का समय बहुत ही मुश्किल होता है. बच्चों को डांटने, मारने या अन्य प्रकार से शोषित करने की कहानी अब हर देश में आम हो गई है.


समाज में बच्चों के प्रति इसी हिंसा और अन्याय को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने हर वर्ष 4 जून को विशेष तौर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मासूम बच्चों को हिंसा से बचाने के लिए International Day of Innocent Children Victims of Aggression घोषित कर दिया. यह कदम उसने फिलीस्तीन और लेबनान युद्ध में बच्चों की मौत के बाद उठाया. संयुक्त राष्ट्र का मानना था कि यह तो बहुत बड़े पैमाने पर हुआ है लेकिन अगर हम विश्व भर में हर घर हर कस्बे को देखें तो बच्चों को हिंसा का इसी तरह सामना करना पड़ता है.


अक्सर देखने में आता है कि पलायन करने वाले लोगों के बच्चों को शरण देने वाले राज्य उनका शोषण करते हैं. इसका जीता जागता उदाहरण हैं श्रीलंका, बांग्लादेश, मिस्र आदि देश जहां बड़े पैमाने पर पिछले दिनों बच्चों पर अमानवीय जुल्मों की कहानी सामने आई है.


लेकिन अगर हर देश अपने आने वाले भविष्य की सही रक्षा करे और ऐसा करना अपना कर्तव्य समझे तो उम्मीद है एक दिन दुनिया में हर मासूस की जिंदगी में बचपन के रंग खिलेंगे, हर चेहरे पर बचपन की मासूमियत भरी मुस्कान बनेगी.



कविता स्त्रोत

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