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अक्सर हम सोचते हैं कि एक क्रांतिकारी की छवि आंखों में क्रोध और हमेशा गुस्से में रहने वाले इंसान की तरह होती होगी. लेकिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ऐसे कई क्रांतिकारी आए हैं जिन्होंने इस छवि के विपरीत एक शांत स्वभाव का होने के बाद भी देश के स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख क्रांतिकारी का रोल अदा किया. ऐसे ही एक वीर स्वतंत्रता सेनानी थे वीर विनायक दामोदर सावरकर.
विनायक दामोदर सावरकर भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे. 28 मई, 1883 को नासिक जिले के भगूर ग्राम में जन्मे विनायक सावरकर में देशभक्ति का जज्बा जन्मजात था. वह उच्च शिक्षा के लिए लंदन गए. वहां उन्होंने ‘अभिनव भारत’ संस्था स्थापित की. 1907 में सावरकर ने ‘1857 का प्रथम स्वतंत्रता समर’ शीर्षक से मराठी में एक पुस्तक लिखी, जिसे अंग्रेजी सरकार ने प्रकाशित होने से पूर्व ही प्रतिबंधित कर दिया. इसके बावजूद पुस्तक के विभिन्न भाषाओं में गुप्त संस्करण छपे और देश-विदेश में क्रांतिकारियों के बीच इसकी लोकप्रियता बढ़ती गई.
भारत की मुक्ति के लिए अपने प्राणों की परवाह न करने वाले सावरकर 10 मई, 1910 को लंदन के विक्टोरिया स्टेशन पर बंदी बनाए गए. उन पर ब्रिटिश सरकार ने अनेक अभियोग लगाए. जब उन्हे जलयान द्वारा भारत लाया जा रहा था, वह शौचालय के रास्ते अथाह समुद्र में कूद पड़े और पांच समुद्री मील से ज्यादा तैरकर फ्रांस के तट पर जा पहुंचे. फ्रांस की पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर पुन: जलयान के अधिकारियों को सौंप दिया.
यद्यपि फ्रांस की भूमि पर सावरकर की गिरफ्तारी अंतरराष्ट्रीय कानून के विरुद्ध थी और श्यामजी कृष्ण वर्मा ने यह मामला हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में प्रस्तुत भी किया था, लेकिन ब्रिटिश सरकार के प्रभाव के कारण उन्हें अपेक्षित सफलता न मिल सकी.
इतने महान क्रांतिकारी का जीवन हमेशा संघर्षों के बीच रहा. 1948 ई. में महात्मा गांधी की हत्या में उनका हाथ होने का संदेह किया गया. इतनी मुश्किलों के बाद भी वे झुके नहीं और उनका देशप्रेम का जज़्बा बरकरार रहा और अदालत को उन्हें तमाम आरोपों से मुक्त कर बरी करना पड़ा. किसी क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी के लिए बहुत शर्मिदंगी की बात थी कि उसके ऊपर अपने ही देश के सेनानी को मारने का आरोप लगे. खैर सत्ता की चाह में तुच्छ लोगों के मंसूबे कभी कामयाब नहीं हुए और सावरकर जी की छवि आज भी स्वच्छ और एक बेहतरीन स्वतंत्रता सेनानी की है.
सावरकर एक प्रख्यात समाज सुधारक थे. उनका दृढ़ विश्वास था कि सामाजिक एवं सार्वजनिक सुधार बराबरी का महत्त्व रखते हैं व एक-दूसरे के पूरक हैं. सावरकर जी की मृत्यु 26 फ़रवरी, 1966 को मुम्बई में हुई थी. आज वीर सावकर के जीवन से प्रेरित होकर उन पर कई फिल्में बन चुकी हैं.
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