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पराक्रम और स्वाभिमान का दूसरा नाम: महाराणा प्रताप

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महाराणा प्रताप: Maharana Pratap

भारत की धन्य भूमि पर ऐसे कई वीर हुए हैं जिन्होंने अपने बल और पराक्रम से समय-समय पर देशभक्ति के अद्वितीय उदाहरण पेश किए हैं. भारत के वीरों के बारे में कई कहानियां हैं जिनके बारे में हम जानते हैं लेकिन ऐसे भी वीरों की कमी नहीं है जिनके बारे में हम जानते ही नहीं. कुछ शूरवीर इतिहास के गर्त में ही गुम रहते हैं. लेकिन जिन पराक्रमी, साहसी वीरों की कहानी हम जानते हैं उनमें से एक शूरवीर महाराणा प्रताप जी की आज जयंती है. महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास में वीरता और राष्ट्रीय स्वाभिमान के सूचक हैं. इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये हमेशा ही महाराणा प्रताप का नाम अमर रहा है.


Maharana Pratapमहाराणा प्रताप  की जीवन परिचय

मेवाड़ की धरती को मुगलों के आतंक से बचाने के लिए महाराणा प्रताप ने अपनी जिंदगी तक दांव पर लगा दी थी. मेवाड़ के राजा उदय सिंह के घर जन्मे उनके ज्येष्ठ पुत्र महाराणा प्रताप को बचपन से ही उच्च कोटी के संस्कार प्रदान थे. वीरता उनके लहु में थी. बालक प्रताप जितने वीर थे उतने ही पितृ भक्त भी थे. पिता राणा उदयसिंह अपने कनिष्ठ पुत्र जगमल को बहुत प्यार करते थे. इसी कारण वे उसे राज्य का उत्ताराधिकारी घोषित करना चाहते थे. महाराणा प्रताप ने पिता के इस निर्णय का तनिक भी विरोध नहीं किया. महाराणा चित्तौड़ छोड़कर वनवास चले गए. जंगल में घूमते घूमते महाराणा प्रताप ने काफी दुख झेले लेकिन पितृभक्ति की चाह में उन्होंने उफ तक नहीं किया. पैसे के अभाव में सेना के टूटते हुए मनोबल को पुनर्जीवित करने के लिए दानवीर भामाशाह ने अपना पूरा खजाना समर्पित कर दिया. तो भी, महाराणा प्रताप ने कहा कि सैन्य आवश्यकताओं के अलावा मुझे आपके खजाने की एक पाई भी नहीं चाहिए.


अकबर से लड़ाई

उन दिनों दिल्ली में सम्राट अकबर का राज था, जो भारत के सभी राजा-महाराजाओं को अपने अधीन कर मुगल साम्राज्य का ध्वज फहराना चाहता था. लेकिन महाराणा प्रताप ने मुगलों की बात ना मानते हुए खुद को राजसी वैभव से दूर रखा और अपने राज्य की स्वतंत्रता के लिए निरंतर लड़ाई करते रहे. 1576 में हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप और अकबर के बीच ऐसा युद्ध हुआ जो पूरे विश्व के लिए आज भी एक मिसाल है. अभूतपूर्व वीरता और मेवाड़ी साहस के चलते मुगल सेना के दांत खट्टे कर दिए और सैकड़ों अकबर के सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया.


250px-Maharana-Pratap-Statueएक चेतक घोड़ा था महान

महाराणा प्रताप के पास उनका सबसे प्रिय घोड़ा “चेतक” था. हल्दी घाटी के युद्ध में बिना किसी सहायक के प्रताप अपने पराक्रमी चेतक पर सवार हो पहाड़ की ओर चल पड़ा. उसके पीछे दो मुग़ल सैनिक लगे हुए थे, परन्तु चेतक ने प्रताप को बचा लिया. रास्ते में एक पहाड़ी नाला बह रहा था. घायल चेतक फुर्ती से उसे लांघ गया परन्तु मुग़ल उसे पार न कर पाये. चेतक की बहादुरी की गाथाएं आज भी लोग सुनाते हैं.


सम्पूर्ण जीवन युद्ध करके और भयानक कठिनाइयों का सामना करके भी महाराणा प्रताप ने मेवाड़ राज्य के स्वाभिमान को गिरने नहीं दिया और यही कारण है कि आज भी सदियों बाद उन्हें याद किया जाता है और उनकी कहानियां बच्चों की किताबों की शान बनी हुई हैं.



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