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किसी भी व्यक्ति के लिए उसका परिवार बहुत महत्वपूर्ण होता है. परिवार का साथ उसे ना सिर्फ भावनात्मक रूप से मजबूत रखता है बल्कि नैतिक और सामाजिक दृष्टि से भी अगर देखा जाए तो परिवार के लोग ही उसे सही-गलत जैसी चीजों के बारे में समझाते हैं. परिवार की इसी महत्ता को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1993 में एक प्रस्ताव पारित कर प्रत्येक वर्ष 15 मई को अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया. अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस परिवारों से जुड़े मसलों के प्रति लोगों को जागरुक करने और परिवारों को प्रभावित करने वाले आर्थिक, सामाजिक दृष्टिकोणों के प्रति ध्यान आकर्षित करने का महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है.
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा हर वर्ष परिवारों से संबंध रखने वाले एक ऐसे विषय का चयन किया जाता है जो परिवार को एक साथ रखने के लिए तो जरूरी है ही साथ ही परिवार के लोगों की वैयक्तिक जरूरतों से भी सीधा संबंध रखता है. पिछले वर्ष यानि कि 2011 के लिए अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस के लिए सामाजिक पारिवारिक गरीबी और सामाजिक बहिष्कार का सामना जैसे विषय को चुना गया था, वहीं इस वर्ष परिवार और काम के बीच संतुलन को सुनिश्चित करने जैसे उद्देश्य को ध्यान में रखकर मनाया जाएगा.
व्यक्ति के जीवन को स्थिर बनाए रखने में उसका परिवार बहुत बड़ी भूमिका निभाता है. लेकिन वर्तमान परिदृश्य पर नजर डालें तो प्राय: यही देखा जाता है कि अपने काम को प्राथमिकता समझने वाले लोग परिवार के महत्व को पूरी तरह नजरअंदाज कर चुके हैं. एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में वे ना तो अपने माता-पिता को समय दे पाते हैं और ना ही अपने वैवाहिक जीवन के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करने में सक्षम होते हैं.
आज संयुक्त परिवारों की संख्या नाममात्र की रह गई है, इसीलिए किसी भी व्यक्ति पर ना तो आर्थिक रूप से भार पड़ता है और ना ही उसे मानसिक तौर पर किसी बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है. लेकिन फिर भी अति व्यस्त जीवनशैली के कारण वह अपने छोटे से परिवार के लिए भी समय नहीं निकाल पाते.
काम के लिए परिवार की खुशियों को दरकिनार कर व्यक्ति भावनात्मक संतुष्टि नहीं पा सकता. ऐसे हालातों के मद्देनजर यह कहना गलत नहीं होगा कि किसी भी व्यक्ति के लिए सफलता की कसौटी ना सिर्फ उसकी व्यवसायिक संतुष्टि है बल्कि उसका पारिवारिक पक्ष से भी सुखद रहना बहुत जरूरी है. लेकिन यह तभी हो सकता है जब वह अपने परिवार जनों के साथ बिताए जाने वाले समय की महत्ता को समझे. आज के दौर में जब महिला-पुरुष दोनों ही कार्यरत रहते हैं ऐसे में आपस में बिताए जाने वाले समय के घंटे और ज्यादा कम हो जाते हैं. इसीलिए इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ की यही कोशिश है कि वह काम करने वाले लोगों को आर्थिक और भावनात्मक तौर पर परिवार के साथ-साथ समाज के सामाजिक-आर्थिक पक्ष की मजबूती में भी अपनी भागीदारी निभाने के लिए प्रेरित करे.
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