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प्रेरणादायक नेता गोपाल कृष्ण गोखले

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gokhaleजब हम कोई बड़ा आंदोलन चला रहे होते हैं तो उस समय हमारे अंदर नेतृत्व के अलावा एक और शक्ति होनी बहुत जरूरी है वह है युवाओं को प्रेरणा देने की शक्ति. स्वतंत्रता आंदोलन का दौर बहुत ही नाजुक दौर था. उस समय देश के सामने आंदोलन को चलाने के साथ युवाओं को सही दिशा देना बहुत जरूरी था ऐसे में एक नाम सामने आया गोपाल कृष्ण गोखले का. गोखले ने अपना सारा जीवन स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई और समाज सेवा में ही बिता दी. वे युवाओं के सबसे बड़े प्रेरणा स्रोत थे. स्वतंत्रता संग्राम में बेहद प्रभावशाली भूमिका निभाने वाले, पकिस्तान के जनक मोहम्म्द अली जिन्ना और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनैतिक गुरू मानते थे.


गोपाल कृष्ण गोखले का जीवन परिचय

ब्रिटिश राज के विरुद्ध चले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उत्कृष्ट सामाजिक और राजनैतिक नेता के रूप में अपनी पहचान स्थापित करने वाले गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म 9 मई, 1886 को तत्कालीन बंबई प्रेसिडेंसी के अंतर्गत महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले में हुआ था. एक गरीब ब्राह्मण परिवार से संबंधित होने के बावजूद गोपाल कृष्ण गोखले की शिक्षा-दीक्षा अंग्रेजी भाषा में हुई ताकि आगे चलकर वह ब्रिटिश राज में एक क्लर्क के पद को प्राप्त कर सकें. वर्ष 1884 में एल्फिंस्टन कॉलेज से स्नातक की उपाधि ग्रहण करने के साथ ही गोपाल कृष्ण गोखले का नाम उस भारतीय पीढ़ी में शुमार हो गया जिसने पहली बार विश्वविद्यालय की शिक्षा प्राप्त की थी. स्नातक होने के बाद गोपाल कृष्ण गोखले न्यू इंगलिश स्कूल, पुणे में अंग्रेजी के अध्यापक नियुक्त हुए. अंग्रेजी भाषा से निकटता होने के कारण गोपाल कृष्ण गोखले जॉन स्टुअर्ट मिल और एडमंड बुर्के के राजनैतिक विचारों से काफी प्रभावित हुए थे. यद्यपि गोपाल कृष्ण गोखले बेहिचक अंग्रेजी शासन के विरुद्ध अपनी आवाज उठाते रहे लेकिन फिर भी उन्होंने आजीवन अंग्रेजी भाषा और राजनैतिक विचारों का सम्मान किया था.


भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में प्रवेश और बाल गंगाधर तिलक के साथ विवाद

फर्ग्युसन कॉलेज में अध्यापन कार्य करते हुए गोपाल कृष्ण गोखले समाज सुधारक महादेव गोविंद रानाडे के संपर्क में आ गए जिन्होंने गोखले को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया. रानाडे के शिष्य के तौर पर गोपाल कृष्ण गोखले ने वर्ष 1889 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की. इनके पार्टी में प्रवेश करने से पहले ही बाल गंगाधर तिलक, एनी बेसेंट, लाला लाजपत राय, दादाभाई नैरोजी कांग्रेस में शामिल थे. गोखले ने अपनी एक विशिष्ट राजनैतिक पहचान बनाने के लिए बहुत प्रयास किया. स्वभाव से नरम गोखले आम जनता की आवाज ब्रिटिश सरकार तक पहुंचाने के लिए पत्रों और वैधानिक माध्यमों का सहारा लेते थे. भारतीय लोगों को अधिकार दिलवाने के लिए वह वाद-विवाद और चर्चाओं का पक्ष लेते थे. वर्ष 1894 में आयरलैंड जाने के बाद गोखले एल्फ्रेड वेब्ब से मिले और उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के लिए राजी किया. इसी वर्ष गोखले और बाल गंगाधर तिलक भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सह-सचिव बनाए गए. गोपाल कृष्ण गोखले और बाल गंगाधर तिलक दोनों ही ब्राह्मण थे और एलफिंस्टन कॉलेज के पूर्व छात्र थे. इसके अलावा दोनों डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी के महत्वपूर्ण सदस्य और गणित के अध्यापक भी थे. इतनी समानताओं के बावजूद गोखले और तिलक में अत्याधिक भिन्नताएं भी थीं. जहां गोखले विचार-विमर्श और बातचीत को अपनी बात मनवाने का जरिया समझते थे वहीं तिलक उग्र राष्ट्रवादी थे. वह ऐसे तरीकों को कायरता के रूप में ही देखते थें.


1891-92 में जब अंग्रेजी सरकार द्वारा लड़कियों के विवाह की उम्र दस वर्ष से बढ़ाकर बारह वर्ष करने का बिल पास करवाने की तैयारी शुरू हुई तब गोखले ने अंग्रेजों के इस कदम का पूरा साथ दिया लेकिन तिलक इस बात पर विरोध करने लगे कि भारतीयों के आंतरिक मसले पर अंग्रेजों को दखल नहीं देना चाहिए. इस मुद्दे पर गोखले और बाल गंगाधर तिलक के बीच विवाद उत्पन्न हो गया. इस विवाद ने कांग्रेस को दो गुटों में विभाजित कर दिया. एक गरमपंथी और दूसरा नरमपंथी.


सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी

वर्ष 1905 में गोपाल कृष्ण गोखले अपने राजनैतिक लोकप्रियता के चरम पर थे. उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया. इसके बाद उन्होंने भारतीय शिक्षा को विस्तार देने के लिए सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना की. गोखले का मानना था कि स्वतंत्र और आत्म-निर्भर बनने के लिए शिक्षा और जिम्मेदारियों का बोध बहुत जरूरी है. उनके अनुसार मौजूदा संस्थान और भारतीय नागरिक सेवा पर्याप्त नहीं थी. इस सोसाइटी का उद्देश्य युवाओं को शिक्षित करने के साथ-साथ उनके भीतर शिक्षा के प्रति रुझान भी विकसित करना था. मोबाइल लाइब्रेरी, स्कूलों की स्थापना और मजदूरों को रात्रि शिक्षा प्रदान करना सर्वेंट्स ऑफ इंडिया का मुख्य कार्य था. हालांकि गोपाल कृष्ण गोखले के देहांत के पश्चात इस दल के प्रभाव में कमी आई लेकिन आज भी अपने कुछ सदस्यों के साथ यह संस्था कार्य करती है.


जिन्ना और गांधी के परामर्शदाता के रूप में गोपाल कृष्ण गोखले

वर्ष 1912 में गांधी जी के आमंत्रण पर गोपाल कृष्ण गोखले दक्षिण अफ्रीका गए. उसी समय गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध अपना संघर्ष समाप्त किया था. गोखले से मिलने के पश्चात गांधी जी ने उनसे भारतीय राजनीति के हालात और आम आदमी की समस्या के विषय में जानकारियां लीं. वर्ष 1920 में गांधी जी एक प्रतिष्ठित नेता के रूप में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बने. अपनी आत्मकथा में भी गांधी जी ने गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनैतिक गुरू कहा है. पाकिस्तान के निर्माता और मुस्लिम नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने भी गोखले को अपने गुरू का स्थान दिया था. इतना ही नहीं मुसलमानों के अध्यात्मिक गुरू आगा खान ने भी अपनी आत्म-कथा में यह लिखा है कि उनके विचार भी गोपाल कृष्ण गोखले के प्रभाव से अछूते नहीं रह पाए थे.


गोपाल कृष्ण गोखले का निधन

जीवन के अंतिम वर्षों में भी गोपाल कृष्ण गोखले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भागीदारी निभाने के साथ सर्वेंट्स ऑफ इंडिया का नेतृत्व करते रहे. दिन-रात काम का दबाव और नई-नई परेशानियों के चलते वह बीमार रहने लगे. 19 फरवरी, 1915 को मात्र 49 वर्ष की आयु में उनका देहांत हो गया.


महादेव गोविंद रानाडे के शिष्य और विचारक गोपाल कृष्ण गोखले की वित्तीय मामलों की समझ और उन पर तार्किक बहस करने की क्षमता बेजोड़ थी. यही कारण है कि उन्हें भारत का ‘ग्लैडस्टोन’ कहा जाता है. गोखले इंस्टिट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स (पुणे), जिसे आमतौर पर गोखले इंस्टिट्यूट भी कहा जाता है, भारत का सबसे पुराना और प्रतिष्ठित संस्थान है. सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी के सदस्य ही इस संस्थान के ट्रस्टी बनाए जाते हैं.


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