Menu
blogid : 3738 postid : 2496

महान रचयिता रवीन्द्रनाथ टैगोर

Special Days
Special Days
  • 1020 Posts
  • 2122 Comments

rabindranath tagoreसुबह-सुबह जब स्कूल के सभी बच्चे एक साथ एक ही सुर में राष्ट्र गान को अपनी आवाज देते हैं तो ऐसा लगता है जैसे पूरा देश एकता के सूत्र में बंध गया हो. जब मुख से राष्ट्रगान की आवाज निकलती है तो ऐसा लगता है कि हर कोई देश के विकास और समृद्धि के लिए प्रार्थना कर रहा हो. आज जहां भी हम इस गीत को सुनते हैं हम खड़े होकर इसका सम्मान करना नहीं भूलते. जब एक ही सुर में पूरा देश राष्ट्रगान गाता है तो उस समय हम देश के साथ एक ऐसी हस्ती को सम्मान देते है जिन्होंने राष्ट्रगान को एक संरचना प्रदान की और उनका नाम है रवीन्द्रनाथ टैगोर.


रवीन्द्रनाथ टैगोर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. उन्होंने बड़ी सहजता से कला के कई स्वरूपों जैसे साहित्य, कविता, नृत्य नाटककार, निबंधकार, चित्रकार और संगीत की ओर आकृष्ट होते हुए उस पर अपनी कलम चलाई. वह विश्व के लिए भारत की आध्यात्मिक विरासत की आवाज बन गए. भारत में उन्हें महान रचनाकार के रूप में जाने जाना लगा. उन्होंने भारत में कला और संस्कृति की अमूर्त शैली को विकसित करते हुए पश्चिम देशों तक पहुंचाया और वहां की संस्कृति को भारत तक ले आए. वह एक ऐसे साहित्कार थे जिनके अंदर असीम सृजन शक्ति थी.


जीवन परिचय

रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई, 1861 को कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में देवेंद्रनाथ टैगोर के घर एक संपन्न बांग्ला परिवार में हुआ था. उनकी मां का नाम शारदा देवी था. उन्होंने एक सशक्त एवं सहज दृश्य शब्दकोश का विकास कर लिया था. श्री टैगोर की इस उपलब्धि के पीछे आधुनिक पाश्चात्य, पुरातन एवं बाल्य कला जैसे दृश्य कला के विभिन्न स्वरूपों की उनकी गहरी समझ थी.


Mahendra Singh Dhoni’s Biography

रवीन्द्रनाथ टैगोर की शिक्षा

रवीन्द्रनाथ टैगोर की प्राथमिक शिक्षा प्रतिष्ठित सेंट ज़ेवियर स्कूल में हुई. बैरिस्टर बनने की चाहत में टैगोर ने 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन पब्लिक स्कूल में नाम दर्ज कराया. वह उन कम लोगों में से थे जिन्होंने लंदन के कॉलेज विश्वविद्यालय में क़ानून का अध्ययन किया लेकिन 1880 में बिना डिग्री हासिल किए ही वापस आ गए. रवीन्द्रनाथ टैगोर को आठ साल की उम्र से ही कविताएं और कहानियां लिखने का शौक़ था. उनके पिता देवेन्द्रनाथ ठाकुर एक जाने-माने समाज सुधारक थे. वे चाहते थे कि रवीन्द्रनाथ बडे होकर बैरिस्टर बनें. इसलिए उन्होंने रवीन्द्रनाथ को क़ानून की पढ़ाई के लिए लंदन भेजा. लेकिन रवीन्द्रनाथ का मन कहां से लगता उनका मन तो साहित्य में ही रमता था. उन्हें अपने मन के भावों को काग़ज़ पर उतारना बहुत ही ज्यादा पसंद था. वह सृजनात्मक शक्ति को रोक नहीं पाते थे. आख़िरकार, उनके पिता ने पढ़ाई के बीच में ही उन्हें वापस भारत बुला लिया और उन पर घर-परिवार की ज़िम्मेदारियां डाल दीं. रवीन्द्रनाथ टैगोर को प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों से बहुत ज्यादा प्यार था. साहित्य से उनको इतना प्यार था कि देश विदेश में उन्हें गुरूदेव के नाम से संबोधित किया जाने लगा.


ऐसे ही नहीं मर मिटती हैं लड़कियां इन पर


रवीन्द्रनाथ टैगोर की रचना

साहित्य के विभिन्न विधाओं में महारत हासिल करने वाले रवीन्द्रनाथ टैगोर ने साहित्य के प्रत्येक क्षेत्र में लगन और ईमानदारी से काम किया. उनकी इसी खूबी की बदौलत उन्हें विश्व के मंच पर भी सम्मान दिया गया. गुरुदेव की लोकप्रिय रचना में सबसे लोकप्रिय रचना गीतांजलि रही जिसके लिए 1913 में उन्हें नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया. वे विश्व के एकमात्र ऐसे साहित्यकार थे जिनकी दो रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान बनीं – भारत का राष्ट्र-गान जन गण मन और बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान आमार सोनार बांग्ला गुरुदेव की ही रचनाएं हैं. उनकी लोकप्रिय रचना गीतांजलि लोगों को इतना पसंद आई इसे जर्मन, फ्रैंच, जापानी, रूसी आदि विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद किया गया जिससे टैगोर का नाम दुनिया के कोने-कोने में फैल गया. रवीन्द्रनाथ ने अपनी कहानियों में साधारण महिमा का बखान किया है. उनकी कहानियों में क़ाबुलीवाला, मास्टर साहब और पोस्टमास्टर आज भी लोकप्रिय कहानियां हैं और लगातार चर्चा का विषय बनी रही हैं. उनके लिए समाज और समाज में रह रही महिलाओं का स्थान तथा नारी जीवन की विशेषताएं गंभीर चिंतन के विषय थे और इस विषय में भी उन्होंने गहरी अंतर्दृष्टि का परिचय दिया. रविन्द्रनाथ की रचनाओं में स्वतंत्रता आंदोलन और उस समय के समाज की झलक साफ तौर पर देखी जा सकती है. उन्होंने विश्व के सबसे बड़े नरसंहार में से एक 1919 में हुए जलियांवाला कांड की घोर निंदा की और इसके विरोध में उन्होंने ब्रिटिश प्रशासन द्वारा दिए गए ‘सर’ की उपाधि वापस कर दिया.


1901 में टैगोर ने पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्र में स्थित शांतिनिकेतन में एक प्रायोगिक विद्यालय की स्थापना की थी. जहां उन्होंने भारत और पश्चिमी परंपराओं और संस्कृति को मिलाने का प्रयास किया. वह विद्यालय में ही स्थायी रूप से रहने लगे और 1921 में यह विश्व भारती विश्वविद्यालय बन गया.


साहित्य में टैगोर का नाम एक समुद्र की तरह था जिसकी गहराई अथाह थी जिसे कभी मापा नहीं जा सकता था. उनकी कविताएं और कहानियां विश्व को एक अलग रास्ता दिखाती हैं. साहित्य में उनके उल्लेखनीय योगदान की बदौलत समकालीन अग्रणी भारतीय कलाकारों में जान फूंकने में सफल हुए. इस महान और बहुमुखी साहित्कार की मृत्यु 7 अगस्त, 1941 को कलकत्ता में हुई थी.


Read more:

टैगोर की विलक्षण विरासत

बंगला साहित्य के विद्वान देवेन्द्रनाथ टैगोर


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to ashuCancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh