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सामाजिक परिवर्तन के मुख्य सूत्रधार – बाबा भीमराव अंबेडकर

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bhim rao ambedkar वर्तमान परिदृश्य में राजनेताओं के लिए दलित और पिछड़ा वर्ग केवल वोट बैंक बढ़ाने का एक जरिया मात्र बन कर रह गए हैं. कोई भी राजनेता ना तो उनकी दशा सुधारने का प्रयत्न करता है और ना ही उन्हें मुख्यधारा में शामिल किए जाने के लिए कुछ खास प्रयास किए जाते हैं. आज भले ही गरीब लोगों के दर्द को समझने वाले लोग कम हैं लेकिन आजादी के समय बहुत से ऐसे नेता हुए जिन्होंने गरीबी को समझा भी और असहाय लोगों को समान अधिकार के साथ जीने का एक मौका भी दिलवाया. डॉ. भीमराव अंबेडकर, जिन्हें बाबा साहब भी कहा जाता है ऐसे ही नेताओं में से हैं जिन्होंने दलित लोगों को बराबरी का अधिकार दिलवाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया. यही कारण है कि आज भी जब दलितों के कल्याण की बात आती है तो सर्वप्रथम बाबा साहब का ही नाम लिया जाता है.


डॉ. भीमराव अंबेडकर का जीवन


डॉ. भीमराव अंबेडकर ने ना सिर्फ दलितों के कल्याण के लिए कार्य किया बल्कि भारत को उसका संविधान दिलवाने में भी इनका एक बड़ा और बेहद महत्वपूर्ण योगदान रहा. संविधान सभा के अध्यक्ष रहे डॉ. भीमराव अंबेडकर का आज जन्मदिन है.


डॉ. भीम राव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में हुआ था. भीमराव अंबेडकर अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान और घर में सबसे छोटे थे. इनका परिवार महार जाति से संबंध रखता था जिन्हें लोग अछूत और बेहद निचला वर्ग मानते थे. बाबा साहब बचपन से ही अपने परिवार के साथ होता आर्थिक और सामाजिक भेदभाव देखते आ रहे थे. भीमराव के पिता हमेशा ही अपने बच्चों की शिक्षा पर जोर देते थे. 1908 में उन्होंने एलफिंस्टन कॉलेज में प्रवेश लिया और बड़ौदा के गायकवाड़ शासक सहयाजी राव तृतीय से संयुक्त राज्य अमेरिका में उच्च अध्ययन के लिये एक सौ पच्चीस रुपये प्रति माह का वजीफा़ प्राप्त किया. 1912 में उन्होंने राजनीतिक विज्ञान और अर्थशास्त्र में अपनी डिग्री प्राप्त की और बड़ौदा राज्य सरकार की नौकरी को तैयार हो गए.

समाजहित में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के योगदान


वर्ष 1913 में भीमराव अंबेडकर संयुक्त राष्ट्र चले गए और कोलंबिया विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की. बड़ौदा सरकार से मिली छात्रवृति की अवधि समाप्त होने के तुरंत बाद भीमराव अंबेडकर को वापस भारत लौटना पड़ा. कुछ समय बाद अंग्रेजी सरकार ने भारत सरकार अधिनियम 1919 पर चर्चा करने के लिए भीमराव अंबेडकर को बुलाया. 1925 में बाबा साहब को बॉम्बे प्रेसीडेंसी समिति में सभी यूरोपीय सदस्यों वाले साइमन आयोग में काम करने के लिए नियुक्त किया गया.


bhimभीम राव अंबेडकर, जिन्हें लोग अछूत और निम्न वर्ग का मानते थे, कुछ ही समय में देश की एक चर्चित हस्ती बन चुके थे. उन्होंने मुख्यधारा के महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों की जाति व्यवस्था के उन्मूलन के प्रति उनकी कथित उदासीनता की कटु आलोचना की. अंबेडकर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और उसके नेता मोहनदास करमचंद गांधी की आलोचना की. उन्होंने उन पर अस्पृश्य समुदाय को एक करुणा की वस्तु के रूप में प्रस्तुत करने का आरोप लगाया. अंबेडकर ब्रिटिश शासन की विफलताओं से भी असंतुष्ट थे. उन्होंने अस्पृश्य समुदाय के लिये एक ऐसी अलग राजनैतिक पहचान की वकालत की जिसमें कांग्रेस और ब्रिटिश दोनों का ही कोई दखल ना हो. 8 अगस्त, 1930 को एक शोषित वर्ग के सम्मेलन के दौरान अंबेडकर ने अपनी राजनीतिक दृष्टि को दुनिया के सामने रखा, जिसके अनुसार शोषित वर्ग की सुरक्षा उसकी सरकार और कांग्रेस दोनों से स्वतंत्र होने में है.


महात्मा गांधी ने अछूत समझे जाने वाले लोगों को हरिजन कहकर संबोधित किया जिसे भीमराव अंबेडकर ने पूर्ण रूप से अस्वीकार कर दिया. उन्होंने अपने अनुयायियों को गांव छोड़ कर शहर जाकर बसने और शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया.


14 अक्टूबर, 1956 को नागपुर में हुए एक आयोजन में अंबेडकर और उनके समर्थकों ने पारंपरिक तरीके से तीन रत्न ग्रहण किए और पंचशील को अपनाते हुए बौद्ध धर्म ग्रहण किया. 1954 में वह बहुत अधिक बीमार रहने लगे. वे नैदानिक अवसाद और कमजोर होती दृष्टि से ग्रस्त थे. 6 दिसंबर, 1956 को अंबेडकर जी की मृत्यु हो गई.

गरीबों के लिए मसीहा भीम राव अंबेडकर


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