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अंग्रेजी में एक कहावत है हेल्थ इज वेल्थ अर्थात स्वास्थ्य ही पूंजी है. लेकिन वर्तमान परिदृश्य पर नजर डालें तो शायद ही कोई व्यक्ति अपने स्वस्थ शरीर के महत्व को समझता हो. दुनियां के अधिकांश देशों में आज ऐसे हालात बन गए हैं जिनमें जटिल और तनावग्रस्त जीवनशैली से जूझता हुआ व्यक्ति ना तो अपने खान-पान पर ध्यान देता है और ना ही अपने स्वास्थ्य की अहमियत समझता है.
लेकिन हमें यह बात भी नहीं भूलनी चाहिए कि जहां कुछ लोग काम और व्यस्तता के कारण अपनी सेहत पर ध्यान नहीं दे पाते, वहीं ऐसे लोगों की भी कोई कमी नहीं है जो भूखे पेट रहने और अस्वच्छ खाना खाने के लिए विवश हैं.
हम यह बात जानते हैं कि एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है. जब हम शारीरिक रूप से स्वस्थ रहते हैं तो हमें मानसिक और सामाजिक रूप से स्वस्थ अनुभूति होती है और हम सफलतापूर्वक अपने सभी कार्यों को पूरा करते हैं.
सफल जीवन के लिए स्वास्थ्य के महत्व को समझते हुए 07 अप्रैल, 1948 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की स्थापना की गई थी, जिसका सबसे प्रमुख कार्य विश्व के सभी देशों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर आपसी सहयोग एवं सही मानक विकसित करना है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन विश्व भर में अपनी सेवाएं प्रदान करता है. यह संस्था इतनी अधिक प्रभावशाली और दक्ष है कि समय पर यह युद्ध-स्तर पर भी कार्यवाही कर सकती है. दुनिया का सबसे बड़ा ब्लड बैंक भी इन्हीं के पास है. आज अपनी सही कार्यशैली और नियंत्रण की वजह से विश्व स्वास्थ्य संगठन पूरी दुनिया में सम्मानपूर्वक देखा जाता है. मलेरिया, पोलिया, चेचक, हैजा, वायरल आदि कई बीमारियों को रोकने में विश्व स्वास्थ्य संगठन का विशेष योगदान रहा है.
वर्ष 2011 में विश्व स्वास्थ्य संगठन सूक्ष्मजीव प्रतिरोधियों के वैश्विक प्रसार से चिंतित होकर इसे ही अपने कार्यक्रम की विषयवस्तु चुना था वहीं इस वर्ष यानि कि 2012 में इस संगठन ने वृद्धावस्था और स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित रखते हुए बेहतर स्वास्थ्य आपके जीवन को और अधिक खुशहाल बना देता है को अपनी विषयवस्तु चुना है. इस बार विश्व स्वास्थ्य संगठन ने “बेहतर स्वास्थ्य किस प्रकार महिलाओं और पुरुषों को वृद्धावस्था में सक्रिय रहने में सहायता कर सकता है” जैसे महत्वपूर्ण विषय पर जन मानस का ध्यान केंद्रित करने का प्रयास किया है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि गरीब देशों में रहने वाले वृद्ध लोगों में हृदय रोग, लकवा जैसी घातक बीमारियां बढ़ रही है. जहां पहले अधिकांशत: केवल यूरोप और जापान में ही वृद्धों से जुड़ी समस्याएं देखने को मिल रही थीं वहीं अब गरीब और मध्य आय वर्ग वाले देशों में भी यह तेजी के साथ बढ़ रही हैं.
वृद्ध लोगों के लिए काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था हेल्प एज इंटरनेशनल का कहना है कि इस WHO जैसी सम्मानजनक और वैश्विक संस्था का इस ओर ध्यान आकर्षित होना एक सकारात्मक पहल है लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय की ओर से इस दिशा में होने वाली कार्रवाई बहुत धीमी गति से हो रही है.
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