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भारत ही विश्व का एकमात्र ऐसा देश है जहां समय-समय पर हमें इतने अधिक पर्व देखने को मिलते हैं. फाल्गुन के महीने में अभी रंगों का त्यौहार गया तो चैत्र के महीने में देवी मां की उपासना और भक्ति का समय आ गया है. चैत्र मास में मनाया जाने वाला चैत्र नवरात्र का त्यौहार आज से शुरू हो रहा है. हमारी संस्कृति में नवरात्र पर्व की साधना का विशेष महत्व है. नवरात्र पूजा पर्व वर्ष में दो बार आता है एक चैत्र माह में, दूसरा आश्विन माह में. अश्विन मास की नवरात्रि के दौरान भगवान राम की पूजा और रामलीला अहम होती है पर चैत्र मास की नवरात्रि पूरी तरह देवी मां की पूजा पर आधारित होती है.
नवरात्र में देवी मां की आराधना करने से वह प्रसन्न होकर अपने भक्तों के सभी कष्टों का निवारण करती हैं और उन्हें सुख, समृद्धि प्रदान करती हैं.
नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा विशेष फलदायी है. नवरात्रि ही एक ऐसा पर्व है जिसमें महाकाली, महालक्ष्मी और मां सरस्वती की साधना करके जीवन को सार्थक किया जा सकता है.ये तीनों देवियां हमारे भावजगत के एक-एक रूप को व्यक्त करती हैं.
चैत्र नवरात्र की श्रद्धा: Chaitra Navaratri 2012
कुछ वर्ष पहले तक चैत्र नवरात्र के प्रति लोगों में विशेष दिलचस्पी नहीं दिख रही थी लेकिन धीरे-धीरे इसके प्रति श्रद्धा व भक्ति बढ़ती जा रही है. अब यह कहा जा सकता है कि दोनों नवरात्रों को लोग समान रूप से मनाने लगे हैं.
चैत्र नवरात्र 2012 (23 मार्च से 02 अप्रैल)
चैत्र नवरात्र में इस वर्ष पंचमी तिथि दो दिन होने के कारण नवरात्र दस दिनों का होगा. 23 मार्च से प्रारम्भ हो रहे चैत्र नवरात्र का दस दिनों का होना शुभ माना जाता है. वहीं पंचमी तिथि दो दिन होने से लक्ष्मी की विशेष कृपा होती है. इस नवरात्रा में अमृत एवं स्वार्थ योग का विशेष संयोग भी है. पंचमी तिथि शुक्रवार को है और शुक्रवार को लक्ष्मी का दिन माना जाता है, इस दृष्टिकोण से भी यह नवरात्रा देवी की उपासना के लिए सर्वोत्तम है. रामनवमी के दिन नवरात्र का समापन होगा.
नवरात्र का पहला दिन
नवरात्र के प्रथम दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है. मां दुर्गा अपने प्रथम स्वरूप में शैलपुत्री के रूप में जानी जाती हैं. पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने से भगवती को शैलपुत्री कहा गया.
पूजन विधि और घट स्थापना
नवरात्र के प्रथम दिन स्नान आदि के बाद घर में धरती माता, गुरुदेव व इष्ट देव को नमन करने के बाद गणेश जी का आहवान करना चाहिए. इसके बाद कलश की स्थापना करना चाहिए. इसके बाद कलश में आम के पत्ते व पानी डालें. कलश पर पानी वाले नारियल को लाल वस्त्र या फिर लाल मौली में बांध कर रखें. उसमें एक बादाम, दो सुपारी एक सिक्का जरूर डालें. इसके बाद मां सरस्वती, मां लक्ष्मी व मां दुर्गा का आह्वान करें. जोत व धूप बत्ती जला कर देवी मां के सभी रूपों की पूजा करें. नवरात्र के खत्म होने पर कलश के जल का घर में छींटा मारें और कन्या पूजन के बाद प्रसाद वितरण करें.
नवरात्र के दिनों में नित्य दुर्गा सप्तसती, दुर्गा चालीसा अथवा दुर्गा सप्तसती में वर्णित सप्त श्लोकी दुर्गा, दुर्गा स्त्रोत सतनाम व देवी कवचम्, देवी सूक्तम व सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ करना चाहिए. पाठ के अंत में क्षमा याचना जरूर करनी चाहिए. नवरात्र पर साधक को ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर अनाज का परित्याग करना चाहिए. नवरात्र के दौरान दूध फल व सिंघाडे़ के आटे का प्रयोग करना चाहिए. अष्टमी व नवमी को कन्या पूजन अवश्य करना चाहिए.
ज्योतिष गणना के अनुसार 23 मार्च को घट स्थापना का शुभ समय सुबह 9 बजे से 10.30 बजे तक है.
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