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आज चार अप्रैल से चैत्र मास के वासंतिक नवरात्र शुरु हो गए हैं. आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी हिंदू नव वर्ष का पहला दिन है. इसी दिन से वासंतिक नवरात्र पर्व (Navratri Festival) का आरंभ भी होता है. इन नौ दिनों में मां भगवती दुर्गा की विशेष आराधना की जाती है. यह त्यौहार भारत भर में पूरे उल्लास के साथ मनाया जाता है. इसमें देवी दुर्गा यानी शक्ति के नौ रूपों की पूजा की जाती है.
नवरात्र पर्व (Navratri Festival) का भारत में विशेष महत्व है. माता भगवती की पूजा करने का यह समय सबसे उपयुक्त माना जाता है. नवरात्र में हिंदू धर्म के अनुसार व्रत और पूजन का विशेष महत्व है. ऐसा माना जाता है कि जो इस नवरात्र में पूरी श्रद्धा और भक्ति से माता भगवती की पूजा करते हैं उनकी सभी मनोकामना माता पूरी करती हैं.
नवरात्रि के पहले दिन घट स्थापना की जाती है और माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है.
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पूजा करने से पहले सर्वप्रथम स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहन कर अपने ईष्ट देवता को याद करें और फिर व्रत का ध्यान कर अपनी पूजा आरंभ करें.
माता शैलपुत्री (Mata Shailputri) : नवरात्र के प्रथम दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है. मां दुर्गा अपने प्रथम स्वरूप में शैलपुत्री के रूप में जानी जाती हैं. पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने से भगवती को शैलपुत्री कहा गया. भगवती का वाहन वृषभ है, उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है. इस स्वरूप का पूजन आज के दिन किया जाएगा. किसी एकांत स्थान पर मृत्तिका से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं और उस पर कलश स्थापित करें. कलश पर मूर्ति स्थापित करें. कलश के पीछे स्वास्तिक और उसके युग्म पार्श्व में त्रिशूल बनाएं.
माता शैलपुत्री (Mata Shailputri) के पूजन से मूलाधार चक्र जागृत होता है, जिससे अनेक प्रकार की उपलब्धियां प्राप्त होती हैं.
ध्यान मंत्र
वंदे वांच्छितलाभायाचंद्रार्धकृतशेखराम्.
वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्रीयशस्विनीम्॥
पूणेंदुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा.
पटांबरपरिधानांरत्नकिरीटांनानालंकारभूषिता॥
प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांतकपोलांतुंग कुचाम्.
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितंबनीम्॥
स्तोत्र मंत्र
प्रथम दुर्गा त्वहिभवसागर तारणीम्.
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
त्रिलोकजननींत्वंहिपरमानंद प्रदीयनाम्.
सौभाग्यारोग्यदायनीशैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन.
भुक्ति, मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन.
भुक्ति, मुक्ति दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
कवच मंत्र
ओमकार:में शिर: पातुमूलाधार निवासिनी.
हींकार,पातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी॥
श्रीकार:पातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी.
हूंकार:पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत॥
फट्कार:पातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा.
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