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जब यह अंगुलियां तबले के सतह को छूती हैं तो वह आवाज निकलती है जो लाखों दिलों को छू जाती है. इन अंगुलियों का जादू श्रोताओं के सर चढ़ कर बोलता है. यह अंगुलियां हैं प्रसिद्ध तबला वादक उस्ताद ज़ाकिर हुसैन की. जाकिर हुसैन ने अपनी कला से लाखों दिलों को तबले का दीवाना बनाया है. आज जाकिर हुसैन के जन्मदिन पर आइए जानते हैं उनके बारे में कुछ विशेष बातें.
मशहूर तबला वादक जाकिर हुसैन जब तबले पर थाप देते हैं, तो हर कोई बस यही कह उठता है, वाह उस्ताद वाह. तबला वादक उस्ताद अल्ला रक्खा खां के बेटे जाकिर ने अपने पिता की परंपरा को सफलता के साथ आगे बढ़ाया है. उस्ताद जी इस वक्त सेन फ्रांसिस्को और मुंबई में देश-विदेश के शागिर्दों को तबला सिखाते हैं.
बारह साल की उम्र से ही जाकिर हुसैन ने संगीत की दुनिया में अपने तबले की आवाज को बिखेरना शुरू कर दिया था. 1973 में उनका पहला एलबम “लिविंग इन द मैटेरियल वर्ल्ड” आया था. उसके बाद तो जैसे जाकिर हुसैन ने ठान लिया कि अपने तबले की आवाज को दुनिया भर में बिखेरेंगे. 1973 से लेकर 2007 तक ज़ाकिर हुसैन विभिन्न अंतरराष्ट्रीय समारोहों और एलबमों में अपने तबले का दम दिखाते रहे.
उन्होंने 2006 में प्रिंसटोन विश्वविद्यालय एवं 2007 में स्टेनफोर्ड विश्व विद्यालय में अथिति प्राध्यापक के तौर पर अध्यापन कार्य भी किया है. जाकिर को मिकी हर्ट के साथ 1991 में पहली दफा प्लेटिनम ड्रम प्रोजेक्ट के लिए और 2008 में ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट के लिए संगीत क्षेत्र के प्रतिष्ठित ग्रेमी पुरस्कार मिले हैं. इसके अलावा वह भारत सरकार के पद्मश्री (1988), पद्मभूषण (2002) और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1991) से नवाजे जाने वाले सबसे कम उम्र के संगीतकार हैं.
तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन को उनकी एल्बम द मेलोडी ऑफ रिदम के लिए बेस्ट क्लासिकल क्रासओवर एल्बम श्रेणी में नामांकित किया गया था लेकिन उन्हें कामयाबी न मिल सकी.
[Zakir Hussain is an Indian tabla player, musical producer and composer. ]
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