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Mohammed Zahur Khayyam profile in hindi
दिलों के तार को ताजी हवा के झोकों की तरह हौले से झंकृत करने वाली सतरंगी मद्धिम धुनों की रचना के लिए मशहूर संगीतकार खय्याम को हमेशा की तरह आज भी उन नगमों की तलाश है जिनके लिए उनकी धुनें बेकरार हैं.
बयासी वर्षीय खय्याम संगीतकारों की उस पीढ़ी से ताल्लुक रखते हैं जिन्होंने बेहद चुनिंदा फिल्मों में उन्हीं नगमों को अपने सुर दिए जो शब्द और भाव के नजरिए से बेहतरीन थे और जो फिल्म की कहानी का हिस्सा बनकर आते थे. यही वजह है कि उन्होंने संगीतकार के रूप में साठ साल के अपने कॅरियर के दौरान मात्र 53 या 54 फिल्मों में ही काम किया लेकिन फिल्म चाहे हिट रही हो या फ्लाप उनका हर नगमा नायाब है और आज भी श्रोताओं को पुरसुकून अहसास से भर देता है. ‘इन आंखों की मस्ती में…’ और ‘दिल चीज क्या है..’ का संगीत आज भी जवां है.
मोहम्मद जहूर खय्याम- Mohammed Zahur “Khayyam”
मूडी और चूजी कहे जाने वाले खय्याम (मूल नाम मोहम्मद जहूर खय्याम हाशमी) का जन्म अविभाजित पंजाब में नवांशहर जिले के राहोन गांव में 8 फरवरी, 1927 को हुआ था. बचपन में सादात हुसैन नाम से पुकारे जाने वाले खय्याम अभिनेता बनने का इरादा रखते थे. वह अक्सर घर से भागकर फिल्म देखने शहर चले जाया करते थे. उनकी इस आदत से घर वाले काफी परेशान रहा करते थे. एक दिन वह अपने इस ख्वाब को पूरा करने के लिए घर से भागकर दिल्ली में अपने चाचा के घर पहुंच गए थे. उस समय उनकी उम्र सिर्फ दस साल थी. उनके चाचा ने उन्हें स्कूल में दाखिल करा दिया लेकिन उनका मन पढ़ने में बिलकुल नहीं लगता था. किसी तरह उन्होंने पांचवीं तक पढ़ाई की. उसी दौरान उनके चाचा ने गीत-संगीत और फिल्मों के लिए उनकी दीवानगी को देखकर उन्हें संगीत सीखने के लिए भी प्रोत्साहित किया.
संगीत का चस्का : Love to Music
खय्याम से बडे़ तीन और भाई थे और सभी अच्छे पढे़-लिखे होने के साथ ही काव्य रचना करने और संगीत सुनने के शौकीन थे. घर में इस तरह का माहौल होने के कारण किसी ने भी खय्याम के संगीत सीखने पर एतराज नहीं किया. हंगामा तभी हुआ जब उन्होंने यह कह दिया कि वह अदाकारी और संगीत के जरिए रोजी-रोटी कमाना चाहते हैं. खय्याम ने संगीत की शुरुआती तालीम उस दौर के मशहूर संगीतकार पंडित हुस्नलाल भगतराम और पंडित अमरनाथ से हासिल की. उसके बाद वह फिल्मों में काम करने की तमन्ना लिए मुंबई पहुंचे जहां उनकी मुलाकात उस दौर के पाकिस्तान के बडे शास्त्रीय गायक और फिल्म संगीतकार बाबा चिश्ती जी.ए. चिश्ती से हुई. उनकी इस मुलाकात का प्रसंग भी बड़ा दिलचस्प है. हुआ यूं कि खय्याम चिश्ती की एक संगीत रचना सुनने के बाद उसका पहला हिस्सा तुरन्त उन्हें सुना दिया. इससे प्रभावित होकर बाबा चिश्ती ने उन्हें अपने सहायक के तौर पर संगीत की तालीम देना तो कबूल कर लिया लेकिन कहा कि वह उन्हें प्रशिक्षण के दौरान पैसा नहीं देंगे. अलबत्ता उनके भोजन, आवास और वस्त्र का इंतजाम कर देंगे.
खय्याम 1946 में अभिनेता बनने के इरादे से मुंबई आ गए और अपने गुरु हुस्नलाल भगतराम के मिले जिन्होंने उन्हें रोमियो एंड जूलियट फिल्म में जोहराबाई अंबालेवाली के साथ युगल गीत दोनों जहां तेरी मोहब्बत में हार के.. गाने का मौका दिया. उस दौरान उन्होंने गीता दत्त और मीना कपूर के साथ भी कुछ गीत गए.
उन दिनों स्वतंत्र रूप से संगीत देने का मौका मिलना आसान काम नहीं था इसलिए वह अजीज खान और हुस्नलाल भगतराम जैसे संगीतकारों के सहायक के रूप में काम करने लगे. आखिरकार खय्याम को एक इम्तिहान पास करने के बाद “हीर-रांझा” फिल्म में संगीत देने का मौका मिला. फिल्म की नायिका मुमताज शांति और निर्माता वली साहब की मंजूरी के बाद उन्हें यह काम मिल पाया. इस फिल्म में खय्याम ने शर्माजी के नाम से सात गीतों के लिए धुनों की रचना की जबकि पांच गीत को एक अन्य संगीतकार ने वर्माजी के नाम से स्वरबद्ध किया. उन्होंने इस फिल्म के लिए गीता दत्त के साथ तीन युगल गीत भी गाए. वर्माजी के साथ युगल संगीतकार के रूप में उन्होंने पांच और फिल्मों में संगीत दिया जिनमें “परदा”, “बीवी” और “प्यार की बातें” प्रमुख हैं. जिया सरहदी ने “फुटपाथ” फिल्म में उन्हें पहली बार स्वतंत्र संगीत निर्देशक के रूप में काम करने का मौका दिया. सरहदी की सलाह पर इस फिल्म में उन्होंने पहली बार खय्याम नाम से संगीत दिया. “फुटपाथ” के बाद खय्याम ने कुछ और फिल्मों में संगीत दिया लेकिन उनसे उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ. फिर उन्हें मिली राजकपूर अभिनीत फिल्म “फिर सुबह होगी” और इस फिल्म से उनके संगीत जीवन में भी सुबह का उजाला फैल गया.
खय्याम और साहिर की जोड़ी ने इस फिल्म के लिए एक से बढ़कर एक खूबसूरत और दिलकश गीत श्रोताओं की नजर किए. फिर आई “शोला और शबनम” फिल्म जिसमें एक बार फिर उनका और कैफी आजमी का साथ हुआ. इस फिल्म के भी सभी गीत बेहद मकबूल हुए और वह शोहरत की उस बुलंदी पर पहुंच गए जहां पहुंचना किसी संगीतकार के लिए सपने की तरह होता है. खय्याम ने अपने लंबे कॅरियर के दौरान दो बार धमाकेदार वापसी की. पहली बार उन्होंने 1976 में यश चोपड़ा की फिल्म “कभी-कभी” और दूसरी बार 1982 में मुजफ्फर अली की फिल्म “उमराव जान” से लंबे समय की खामोशी को तोड़ा.
खय्याम ने गैर फिल्मी गीतों और गजलों को भी अपनी संवेदनशील संगीत रचनाओं से सजाया और मुकेश, तलत महमूद, मीना कुमारी, मोहम्मद रफी आदि के स्वरों का उनमें इस्तेमाल किया. मीना कुमारी के गीतों को उन्होंने “आई राइट आई रिसाइट” एल्बम नाम से जारी किया. उनकी पत्नी जगजीत कौर ने भी उनकी संगीत रचनाओं पर कई फिल्मी और गैर फिल्मी गीतों को अपना स्वर दिया है. इसके अलावा वह ऐसे संगीतकारों की जमात में शामिल हैं जिन्होंने रेखा, माला सिन्हा और शबाना आजमी जैसी अभिनेत्रियों से भी गाने गवाए हैं. खय्याम को फिल्मी संगीत में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए लता मंगेशकर पुरस्कार, पहले नौशाद सम्मान, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार आदि पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है.
साभार: Jagran
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