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हिन्दी सिनेमा में जब भी महान गायकों के बात होती है तो रफी साहब और किशोर कुमार का नाम अनायास ही मुंह से निकल जाता है. हालांकि इन बड़े नामों के बीच अक्सर वह नाम गुम हो जाते हैं जिनके गानों में तो वही जादू होता है पर शायद वक्त कभी उन्हें आगे नहीं आने देता. ऐसा ही एक नाम है हिन्दी सिनेमा जगत के महेन्द्र कपूर का.
चाहे पूरब और पश्चिम फिल्म के देश भक्ति के गीत हो या प्यार से भरे हसीन नगमें महेन्द्र कपूर हर मूड में गाना गाने के महारथी थे. अपनी आवाज से उन्होंने ऐसा जादू पैदा किया है कि आज भी लोग उन्हें याद करते हैं. हालांकि रफी और किशोर दा की चमक में वह कहीं खोए हुए लगते हैं लेकिन इन सब के बीच उनकी एक लग ही जगह है जो कोई नहीं ले सकता. आज उनकी जयंती है तो चलिए जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ ऐसी विशेष बातें.
महेन्द्र कपूर का जीवन
पंजाब के अमृतसर में नौ जनवरी 1934 को जन्मे महेंद्र कपूर किशोरावस्था में मोहम्मद रफी के दीवाने थे. बचपन से ही वह उस दौर के प्रसिद्ध पार्श्व गायक मोहम्मद रफी से प्रेरित थे और उन्होंने पंडित हसनलाल, पंडित जगन्नाथ बुआ, उस्ताद नियाज अहमद खान, उस्ताद अब्दुल रहमान खान और पंडित तुलसीदास शर्मा जैसे जाने-माने शास्त्रीय गायकों से शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू कर दिया.
उनके परिवार में उनकी पत्नी अभिनेता पुत्र रोहन कपूर और तीन पुत्रियां हैं.
महेन्द्र कपूर का कॅरियर
महेन्द्र कपूर ने अपनी खुद की गायन शैली विकसित की और उन्होंने मेट्रो मर्फी आल इंडिया गायन प्रतियोगिता जीती. इसने पार्श्वगायक के तौर पर उनके कैरियर का रास्ता खोला.
कपूर को पार्श्व गायक के तौर पर पहला बड़ा मौका वी शांताराम की फिल्म नवरंग में 1959 में मिला. इस फिल्म में उन्होंने आधा है चंद्रमा.. गीत गाया जिसे सी रामचंद्र ने संगीतबद्ध किया था.
महेंद्र कपूर ने अपने दौर के कई कलाकारों के लिए पार्श्वगायन किया पर मनोज कुमार के साथ उनकी जोड़ी को खास कामयाबी मिली. महेंद्र कपूर ने मनोज कुमार के लिए उपकार, शहीद, पूरब और पश्चिम, क्रांति, रोटी कपड़ा और मकान जैसी कई फिल्मों में पार्श्वगायन किया. निर्माता..निर्देशकों में उनका बी आर चोपड़ा के साथ विशेष तालमेल रहा और महेंद्र कपूर ने उनकी कई फिल्मों में गीत गाए. इन फिल्मों में धूल का फूल, गुमराह, वक्त, हमराज, धुंध आदि शामिल हैं.
हिंदी के अलावा उन्होंने गुजराती, मराठी, पंजाबी सहित कई भाषाओं में गीत गाए. बी आर चोपडा के अति लोकप्रिय धारावाहिक महाभारत का टाइटल गीत भी उन्होंने गाए.
संगीत के लिहाज से हिंदी सिनेमा के स्वर्णिम दौर में मोहम्मद रफी, मुकेश, मन्ना डे, तलत महमूद, हेमंत कुमार जैसे बहुचर्चित गायकों के बीच एक अलग मुकाम बनाने वाले महेंद्र कपूर ने विभिन्न प्रकार के गीत गाए लेकिन देशभक्ति के गीतों के मामले में उन्हें विशेष लोकप्रियता मिली और भारत कुमार के नाम से मशहूर अभिनेता मनोज कुमार के साथ उनकी जोड़ी खास रूप से सराही गई.
महेंद्र कपूर को मिले पुरस्कार
महेंद्र कपूर को 1968 में “उपकार” फिल्म के बहुचर्चित गीत मेरे देश की धरती सोना उगले.. के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था.
इस महत्वपूर्ण सम्मान के अलावा उन्हें 1963 में “गुमराह” फिल्म के गीत चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएं.. के लिए सर्वश्रेष्ट पार्श्वगायक का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था. बाद में एक बार फिर 1967 में “हमराज” फिल्म के नीले गगन के तले.. के लिए भी उन्हें पार्श्वगायक का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला. उनके जीवन का तीसरा फिल्मफेयर पुरस्कार “रोटी कपड़ा और मकान” के नहीं-नहीं.. और नहीं के लिए 1974 में मिला.
बाद में उन्हें पद्मश्री और महाराष्ट्र सरकार के लता मंगेशकर सम्मान से नवाजा गया.
महेंद्र कपूर के बेहतरीन गानें
है प्रीत जहां की रीत सदा, मेरे देश की धरती, मेरा रंग दे बसंती चोला, अब के बरस तुझे जैसे लोकप्रिय देशभक्ति गीतों को अपनी आवाज देने वाले महेंद्र कपूर ने रूमानियत, विरह, श्रृंगार, आशावादिता, भक्ति आदि के रंग में डूबे गीतों को भी बखूबी स्वर दिया. उनके गीतों में तेरे प्यार का आसरा चाहता हूं, किसी पत्थर की मूरत से, चलो एक बार फिर से अजनबी, नीले गगन के तले आदि ऐसे हैं जिन्हें आज भी काफी संख्या में संगीतप्रेमी पसंद करते हैं.
मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, मुकेश, मन्ना डे, तलत महमूद, हेमंत कुमार जैसे बेमिसाल गायकों के दौर में होने के कारण कपूर को वैसी प्रसिद्धि नहीं मिली जिसके वह हकदार थे लेकिन इसके बावजूद वह एक अलग पहचान बनाने में कामयाब रहे. कपूर का 27 दिसंबर 2008 को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया.
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