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Raj Kapoor: The Showmanof Bollywood (बॉलिवुड के शोमैन राजकपूर)

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बॉलिवुड में अगर आज कपूर परिवार सबसे समृद्ध और सफल परिवार माना जाता है तो इसके पीछे वजह हैं वे महान हस्तियां जिन्होंने अपना तन-मन-धन इस इंडस्ट्री को अर्पित कर दिया. हिन्दी सिनेमा के गौरव पूर्ण इतिहास का सबसे सुनहरा पन्ना शोमैन राजकपूर ने लिखा है. राज कपूर सिर्फ एक या दो फिल्मों के लिए ही नहीं बल्कि अपनी उन सभी फिल्मों के लिए याद किए जाते हैं जिसे उन्होंने हिन्दी सिनेमा को अर्पित किया. राजकपूर ही वह शख्स थे जिन्होंने हिन्दी सिनेमा को ग्लोब में जगह दिलाई.


Raj_Kapoorराजकपूर हिंदी सिनेमा के महानतम शोमैन थे जिन्होंने कई बार सामान्य कहानी पर इतनी भव्यता से फिल्में बनाईं कि दर्शक बार-बार देखकर भी नहीं अघाते. नीली आंखों में तैरते कई सपनों को फिल्मों के माध्यम से पेश करने वाले राज कपूर उस दौर में सामाजिक विषमताओं को मनोरंजन के ताने-बाने के साथ पर्दे पर उकेरने की हिम्मत रखते थे जब हिन्दी फिल्म उद्योग अपनी जड़ें मजबूत कर रहा था.


आजादी के बाद देश को प्रगति की राह में अग्रसर करने के लिए नेहरू की समाजवादी अवधारणा को ध्यान में रखते हुए राज कपूर ने सामाजिक संदेशों के साथ मनोरंजक फिल्में बनाईं. समस्या चाहे बेरोजगारी की हो या सर्कस के कलाकारों की, या फिर विधवा विवाह की, राज कपूर ने मनोरंजन के ताने-बाने में लपेट कर इन्हें बड़ी खूबसूरती से पर्दे पर पेश किया. राज कपूर न केवल हिन्दी फिल्मों के पहले शोमैन कहलाए बल्कि वह एक संपूर्ण फिल्मकार थे जो अभिनय, निर्देशन, निर्माण के अलावा कहानी, पटकथा, संपादन, गीत, संगीत जैसे पक्षों की गहरी जानकारी रखते थे. राज कपूर की सामाजिक संदेशों वाली मनोरंजक फिल्मों में श्री 420, जिस देश में गंगा बहती है, जागते रहो, अब दिल्ली दूर नहीं, बूट पालिश, प्रेम रोग आदि शामिल हैं.


प्रख्यात अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के घर पैदा हुए और सिने माहौल में पले बढ़े राज कपूर को बचपन से ही फिल्मों से लगाव था. राज कपूर का जन्म 14 दिसम्बर, 1924 को पेशावर में हुआ था. उनका बचपन का नाम रणबीर राज कपूर था. अपने पिता के साथ वह 1929 में मुंबई आए और उनके ही नक्शे कदम पर चलते हुए सिनेमा जगत में अपने आप को महान बनाया. 1935 में उन्होंने पहली बार फिल्म “इंकलाब ”में काम किया था, तब वह महज 11 साल के थे. उनकी पहली अभिनेता रूपी फिल्म थी “नीलकमल”. केदार शर्मा ने राज के अंदर छिपी प्रतिभा को पहचाना और 1947 में मधुबाला के साथ फिल्म नीलकमल में बतौर हीरो लिया.


अपने वक्त के सबसे कम उम्र के निर्देशक राजकपूर ने आर. के. फिल्म्स की स्थापना 1948 में की और पहली फिल्म आग का निर्देशन किया. 1948 से 1988 के बीच बतौर हीरो राजकपूर ने आर. के. फिल्म्स के बैनर तले कई फिल्में बनाईं जिसमें नर्गिस के साथ उनकी जोड़ी पर्दे की सफलतम जोडि़यों में से एक थी.


mera-naam-jokerमेरा नाम जोकर

राजकपूर की सबसे महत्वाकांक्षी फिल्म 1970 में प्रदर्शित “मेरा नाम जोकर” थी जिसे बनाने की योजना 1955 में “श्री 420” के निर्माण के दौरान से ही उनके दिमाग में थी. लेकिन यह फिल्म बाक्स आफिस पर औंधे मुंह जा गिरी. इसके बावजूद उनका फिल्मों के प्रति जुनून खत्म नहीं हुआ. माना जाता है दर्शक इस फिल्म को समझ नहीं सके. यह फिल्म हिन्दी सिनेमा की सबसे गंभीर फिल्मों में से एक मानी जाती है. राजकपूर इस फिल्म के बाद टूट से गए थे. कर्ज का बोझ और सपने टूटने के दर्द ने राजकपूर को झकझोर दिया. लेकिन “मेरा नाम जोकर” की असफलता से राजकपूर को उबारा उनकी फिल्म “बॉबी” ने जिसमें किशोर वय की प्रेमकथा का खूबसूरती से बुना गया ताना बाना था.

अभिनय की दुनिया से अलग होकर राजकपूर ने बॉबी, सत्यम शिवम सुंदरम, प्रेम रोग, राम तेरी गंगा मैली जैसी खूबसूरत फिल्मों का निर्माण किया.


राजकपूर और मुकेश

राजकपूर पर फिल्माए गए लगभग सभी गाने मुकेश की आवाज में होते थे. मुकेश ने राजकपूर के लिए श्री 420, चोरी-चोरी, मेरा नाम जोकर, दिल ही तो है जैसी फिल्मों में गाने गाए. जब मुकेश की मृत्यु हुई तो खुद राजकपूर ने कहा कि “मैने अपनी आवाज खो दी है.”


Raj-Kapoor-Nargisराजकपूर और नर्गिस

एक समय माना जाता था कि राजकपूर और नर्गिस का अफेयर है. दोनों ने एक साथ सोलह फिल्मों में काम किया और हर फिल्म में उनकी आपस में जोड़ी बहुत बेहतरीन लगती थी. दोनों ने साथ साथ प्यार, जान पहचान, आवारा, अनहोनी, बेवफा, पापी, श्री 420, जागते रहो जैसी फिल्मों में साथ काम किया. हालांकि दोनों का रिश्ता सोलह फिल्मों तक ही कायम रहा.


राजकपूर का परिवार

राजकपूर ने कृष्णा कपूर से शादी की थी. राजकपूर के पांच बच्चे हुए. रणधीर कपूर, रितू नंदा, ऋषि कपूर, रीमा और राजीव कपूर उनकी संतान हैं. आज उनके बच्चे और नाती-पोते हिन्दी सिनेमा की शान बने हुए हैं. करिश्मा कपूर, करीना कपूर और रणबीर कपूर आज भी राजकपूर के शौक को आगे बढ़ा रहे हैं.


राजकपूर की मृत्यु

राम तेरी गंगा मैली के बाद वह हिना पर काम कर रहे थे पर नियति को यह मंजूर नहीं था और दादा साहब फाल्के सहित विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित इस महान फिल्मकार का दो जून, 1988 को निधन हो गया.

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