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देश की सुरक्षा के लिए हमारे सैनिक दिन-रात एक कर अपना कर्तव्य निभाते हैं. लेकिन कई बार देश की सुरक्षा में सैनिकों को अपने प्राणों की भी आहुति देनी पड़ती है. ऐसे में इन सैनिकों के घरवालों के दर्द को समझ पाना बहुत कठिन होता है. एक सैनिक को शहीद होने पर सरकार द्वारा जो पेंशन मिलता है वह उतना नहीं होता जिससे उसका परिवार सही से चल सके. यह बात सरकार भी अच्छी तरह जानती है. इसलिए सरकार ने देश के सैनिकों की मदद करने का अनूठा प्लान सोचा था.
सशस्त्र सेना झंडा दिवस का इतिहास
सरकार ने साल 1949 से सशस्त्र सेना झंडा दिवस मनाने का निर्णय लिया. देश की सुरक्षा में शहीद हुए सैनिकों के आश्रितों के कल्याण हेतु सशस्त्र सेना झंडा दिवस मनाया जाता है. इस दिन झंडे की खरीद से होने वाली आय शहीद सैनिकों के आश्रितों के कल्याण में खर्च की जाती है. सशस्त्र सेना झंडा दिवस द्वारा इकट्ठा की गई राशि युद्ध वीरांगनाओं, सैनिकों की विधवाओं, भूतपूर्व सैनिक, युद्ध में अपंग हुए सैनिकों व उनके परिवार के कल्याण पर खर्च की जाती है.
07 दिसंबर, 1949 से शुरू हुआ यह सफर आज तक जारी है. आजादी के तुरंत बाद सरकार को लगने लगा कि सैनिकों के परिवार वालों की भी जरूरतों का ख्याल रखने की आवश्यकता है और इसलिए उसने 07 दिसंबर को झंडा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया. इसके पीछ सोच थी कि जनता में छोटे-छोटे झंडे बांट कर दान अर्जित किया जाएगा जिसका फायदा शहीद सैनिकों के आश्रितों को होगा. शुरूआत में इसे झंडा दिवस के रूप में मनाया जाता था लेकिन 1993 से इसे सशस्त्र सेना झंडा दिवस का रूप दे दिया गया.
यूं तो भागदौड की जिंदगी में शायद ही हमें कभी उन सैनिकों की याद आती हो जो हमारी सुरक्षा के लिए शहीद हो गए हैं पर आज के दिन अगर मौका मिले तो हमें उनकी सेवा करने से पीछे नहीं हटना चाहिए. रेलवे स्टेशनों पर, स्कूलों में या अन्य स्थलों पर आज लोग आपको झंडे लिए मिल जाएंगे जिनसे आप चाहें तो झंडा खरीद इस नेक काम में अपना योगदान दे सकते हैं.
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