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सामाजिक परिवर्तन के वाहक बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर

Special Days
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देश में आज अधिकतर नेता दलितों को वोट बैंक तो मानते हैं पर उनकी दशा सुधारने के लिए कुछ खास नहीं करते. और आखिर करेंगे कैसे. एक गरीब दलित की व्यथा वही समझ सकता है जिसने गरीबी को पास से देखा हो. लेकिन वो तो भला हो उन नेताओं का जिन्होंने देश की आजादी से पहले और बाद में देश के दलितों और असहायों को कुछ विशेष अधिकार दे आज उन्हें सर उठाकर जीने का मौका दिया है वरना आज के नेता जो हर चीज लूटने पर तुले हैं वह इन्हें भी नोच डालते. देश के इतिहास में जब भी दलितों के कल्याण की बात आती है तो सर्वप्रथम नाम बाबा साहेब अंबेडकर का जेहन में आता है.


Bhimrao Ramji Ambedkarअंबेडकर ने गरीबी को करीब से महसूस किया था और यही कारण था कि वह गरीबों की मनोदशा को करीब से समझ सकते थे. उन्होंने देश के गरीबों और दलितों के लिए कई ऐसे कार्य किए जिनकी वजह से उन्हें मरणोपरांत भारत-रत्न का सम्मान दिया गया था.


अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान के रूप में जन्मे डा. भीमराव अम्बेडकर (14 अप्रैल, 1891-06 दिसंबर, 1956) जन्मजात प्रतिभासंपन्न थे. बीए की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के पश्चात आर्थिक कारणों से वह सेना में भर्ती हो गए. उन्हें लेफ्टिनेंट के पद पर बड़ौदा में तैनाती मिली. नौकरी करते उन्हे मुश्किल से महीना भर ही हुआ था कि एक दिन अचानक पिता की बीमारी का समाचार मिला. वह अपने अधिकारी के पास गए और अवकाश स्वीकृत करने की प्रार्थना की. अधिकारी ने कहा कि एक वर्ष की सेवा से पूर्व किसी दशा में अवकाश स्वीकृत नहीं किया जा सकता. सुनकर भीमराव असमंजस में पड़ गए. भीमराव ने पुन: अनुनय-विनय की, किंतु नियमों के अनुसार अधिकारी उन्हे अवकाश नहीं दे सकता था. विवश होकर भीमराव ने त्यागपत्र लिखकर वर्दी उतार दी. अधिकारी के पास अन्य कोई विकल्प नहीं था. उसने उनका त्यागपत्र स्वीकार कर लिया. भीमराव पिता की सेवा के लिए अंतिम समय में उनके पास पहुंच गए. पिता के निधन के पश्चात अपने मित्र कैलुस्कर की प्रेरणा और महाराजा बड़ौदा की आर्थिक मदद से भीमराव उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गए. वहां के कोलंबिया विवि में प्रवेश लेकर उन्होंने अपनी अध्ययनशीलता का परिचय दिया.


उन्होंने अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र में एमए की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की. अर्थशास्त्र में शोध तथा कानून की पढ़ाई के लिए भीमराव इंग्लैंड गए. वहां उन्हे पग-पग पर अपमान का अनुभव हुआ. तलाश की एक घटना से उनका स्वाभिमान आहत हुआ और वह स्वदेश लौटने की सोचने लगे. 1917 में अंबेडकर भारत लौटे और देश सेवा के महायज्ञ में अपनी आहुति डालनी शुरू की. महाराजा कोल्हापुर के सहयोग से उन्होंने मराठी में ‘मूक नायक’ नामक पाक्षिक पत्र निकालना शुरू किया. वह ‘बहिष्कृत भारत’ नामक पाक्षिक तथा ‘जनता’ नामक साप्ताहिक के प्रकाशन तथा संपादन से भी जुड़े. उन्होंने विचारोत्तेजक लेख लिखकर लोगों को जगाने का प्रयास किया. देश के स्वतंत्र होने पर उन्हे कानून मंत्री बनाया गया. 29 अगस्त, 1947 को अंबेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया. अंबेडकर ने मसौदा तैयार करने के इस काम में अपने सहयोगियों और समकालीन प्रेक्षकों की प्रशंसा अर्जित की. इस कार्य में अंबेडकर का शुरुआती बौद्ध संघ रीतियों और अन्य बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन बहुत काम आया.


अंबेडकर ने महिलाओं के लिए व्यापक आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की वकालत की और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए सिविल सेवाओं, स्कूलों और कॉलेजों की नौकरियों में आरक्षण प्रणाली शुरू करने के लिए सभा का समर्थन भी हासिल किया. 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अपना लिया. 1951 में संसद में अपने हिन्दू कोड बिल के मसौदे को रोके जाने के बाद अंबेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. इस मसौदे में उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की गयी थी.


14 अक्टूबर, 1956 को नागपुर में अंबेडकर ने खुद और उनके समर्थकों के लिए एक औपचारिक सार्वजनिक समारोह का आयोजन किया. अंबेडकर ने एक बौद्ध भिक्षु से पारंपरिक तरीके से तीन रत्न ग्रहण और पंचशील को अपनाते हुये बौद्ध धर्म ग्रहण किया. 1948 से अंबेडकर मधुमेह से पीड़ित थे. जून से अक्टूबर 1954 तक वो बहुत बीमार रहे इस दौरान वो नैदानिक अवसाद और कमजोर होती दृष्टि से ग्रस्त थे. 6 दिसंबर, 1956 को अंबेडकर की मृत्यु हो गई.


भीम राव अम्बेडकर के बारे में अधिक जानने के लिए नीचे दिए हुए लिंक्स पर क्लिक करें:


गरीबों के मसीहा-डा. भीम राव अंबेडकर (Proflie of Bhimrao Ramji Ambedkar)

बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर पुण्यतिथि पर विशेष

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