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जिंदादिल सदाबहार देवानंद

Special Days
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हर फिक्र को धुएं में उड़ाने वाले हिन्दी फिल्मों के जाने-माने सदाबहार अभिनेता देवदत्त पिशोरीमल आनंद उर्फ देव आनंद अपने रूमानी अंदाज से अपने चाहने वालों की निगाहों में हमेशा मोती बनकर रहेंगे. हर दिल अजीज देव आनंद का 04 दिसंबर 2011 को लंदन में निधन हो गया. लंदन में उन्हें अपने होटल के कमरे में, भारतीय समयानुसार तड़के साढ़े तीन बजे दिल का दौरा पड़ा और उन्होंने अंतिम सांस ली. उस वक्त वह सो रहे थे. यह भी कहा जा रहा है कि उन्हें सीने में दर्द की शिकायत हुई और उन्होंने अपने पुत्र सुनील को जगाया, लेकिन जब तक चिकित्सा सुविधा पहुंचती, उन्होंने प्राण त्याग दिए.


Dev Anandदेवानंद नहीं चाहते थे कि भारत में उनके चाहने वाले उनका मरा मुंह देखें इसलिए उन्होंने जिंदगी के आखिरी पल लंदन में बिताने का फैसला किया. देव आनंद का अंतिम संस्कार लंदन में ही किया जाएगा.


कुछ दिन पहले ही उन्होंने अपना 88वां जन्मदिन बनाया था और अपनी नई फिल्म “चार्जशीट” अपने चाहने वालों के सामने रखी थी. लेकिन किसी ने सोचा नहीं था कि एक महीने पहले जिस इंसान ने एक फिल्म में अभिनेता, निर्देशक और निर्माता की भूमिका निभाई थी वह इतनी जल्दी जिंदगी का साथ छोड़ जाएगा.


देव आनंद की जिंदगी पल-पल बहती कलकल नदी थी. उसमें मोड़ तो खूब आए, लेकिन कभी विराम नहीं आया. अपनी जिंदगी के आखिरी पल तक वह काम करते रहे. काम के प्रति ऐसी श्रद्धा शायद ही किसी इंसान में दिखाई दे. जिस उम्र में सितारे बाप, दादाओं के रोल करते हैं उस उम्र में भी देवानंद ने खुद को सहाबहार और लीड रोल में रखा. उन्होंने 88 साल की उम्र में भी पर्दे पर “चार्जशीट” जैसी फिल्म में लीड रोल किया. उन्होंने खुद को कभी बूढ़ा महसूस नहीं किया. उनके नाम के साथ हमेशा सदाबहार लगा रहा और इस शब्द को उन्होंने अपनी फिल्मों के द्वारा सच भी साबित किया.


हॉलीवुड स्टार ग्रेगरी पैक को अपना आदर्श मानने वाले देव आनंद ने हिंदी सिनेमा को ‘गाइड’, ‘पेइंग गेस्ट’, ‘बाजी’, ‘ज्वेल थीफ’, ‘सीआइडी’, ‘जॉनी मेरा नाम’, ‘अमीर गरीब’, ‘वारंट’, ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ और ‘देस परदेस’ जैसी सुपर हिट फिल्में दीं. देव आनंद की युवा दिलों में स्वीकृति इस बात से भी पता चलती है कि जब उनके समकालीन और प्रतिद्वंद्वी राज कपूर और दिलीप कुमार चरित्र किरदार निभाने लगे थे, तब भी वह नई और युवा हीरोइनों को पर्दे पर लुभा रहे थे.


Dev Anandदेवानंद का फैशन

एक समय था जब देवानंद जो पहनते थे वही फैशन बन जाता था. पांचवें, छठें और सातवें दशक के युवाओं में फैशन को लोकप्रिय बनाने में देव साहब का बड़ा योगदान था. अक्सर उनके गेटअप की युवाओं ने नकल की. चाहे बड़े कॉलर की कमीज हो, ब्राउन जूते हों या फिर खास स्टाइल की टोपी, उनकी वजह से युवाओं ने उसे खूब अपनाया. मफलर और चौड़ी टाई भी उनकी वजह से ही फैशन में आई. मफलर डाल कर उन्होंने जिस अंदाज में अभिनय किया, आम जिंदगी में लोगों ने भी उसी स्टाइल को कॉपी किया.


काला रंग तो जैसे देवानंद की पहचान थी. एक समय था जब काला रंग मातम’ या ‘उदासी’ का प्रतीक माना जाता था. फिर आई फिल्म ‘काला पानी’. इसमें नायक के बेगुनाह पिता को ‘काला पानी’ की सजा हो जाती है. नायक संकल्प लेता है कि जब तक वह पिता को मुक्त नहीं कराएगा, काले कपड़े ही पहनेगा. फलस्वरूप, आखिरी की दो-एक रील छोड़कर फिल्म का हीरो काले लिबास में ही नजर आता है. वह हीरो देव आनंद ही थे. फिल्म के बाद युवाओं में काली शर्ट-पैंट तो लोकप्रिय हुई ही, युवतियां भी काले रंग पर फिदा हो गईं. काले कोट-पैंट में देवानंद के प्रति लड़कियों की दीवानगी कुछ ऐसी थी कि कोर्ट को भी उन्हें काला कोट पहनने पर रोक लगानी पड़ी थी.


Dev anandसंघर्ष से सुहाने सफर तक

अन्य लोगों की तरह देव आनंद ने भी सफलता से पहले काफी संघर्ष किया. उन्होंने 160 रुपये के वेतन पर चर्चगेट में एक सैन्य सेंसर कार्यालय में काम किया. भाग्य ने साथ दिया और जल्द ही उन्हें प्रभात टाकीज की तरफ से हम एक हैं (1946) में एक अभिनेता के रूप में काम करने का प्रस्ताव मिला. पुणे में फिल्म की शूटिंग के दौरान देव आनंद की मुलाकात गुरु दत्त से हुई और वहीं दोनों की मित्रता हो गई. देव आनंद के कॅरियर में दो वर्षों बाद महत्वपूर्ण मोड़ तब आया, जब अशोक कुमार ने बाम्बे टाकीज की हिट फिल्म जिद्दी (1948) में काम करने का बड़ा मौका दिया. इस फिल्म के बाद अशोक कुमार देव आनंद को लगातार फिल्मों में हीरो बनाते रहे.


देव आनंद ने 1949 में खुद की निर्माण कम्पनी “नवकेतन” की शुरुआत की. पूर्व के वादे के मुताबिक उन्होंने अपने बैनर की पहली फिल्म बाजी (1951) के निर्देशन के लिए गुरु दत्त से कहा. इस फिल्म ने देव आनंद को रातों रात स्टार बना दिया, और वह जीवन के अंतिम सांस तक, छह दशकों बाद भी स्टार बने रहे.


Dev Anand रोमांसिंग विद लाइफ

अपनी किताब “रोमांसिंग विद लाइफ” में देव आनंद ने फिल्मी दुनिया में अपने प्रेम-प्रसंगों का खुलकर इजहार किया है. इसमें सबसे पहला नाम आता है बीते जमाने की मशहूर अदाकारा सुरैया का. देव आनंद और सुरैया की मोहब्बत किसी फिल्म की स्क्रिप्ट से कम नहीं है. दोनों में प्यार तो हुआ लेकिन हिंदू-मुसलिम की दीवार के कारण दोनों की मोहब्बत को मंजिल नहीं मिल पाई. प्यार को घर वालों की रजा की मुहर नहीं मिली और एक फिल्मी अंदाज में दोनों अलग हो गए.


जीत फिल्म के सेट पर देव आनंद ने सुरैया से अपने प्यार का इजहार किया और सुरैया को तीन हजार रुपयों की हीरे की अंगूठी दी.


सुरैया की नानी को ये रिश्ता नामंजूर था. वो एक हिंदू-मुसलिम शादी के पक्ष में नहीं थीं. कहा जाता है कि उनकी नानी को फिल्म में देव आनंद के साथ दिए जाने वाले रोमांटिक दृश्यों से भी आपत्ति थी. वो दोनों की मोहब्बत का खुलकर विरोध करती थीं. यही नहीं बाद में उन्होंने देव आनंद का सुरैया से फोन पर बात करना भी बंद करवा दिया था. उन्होंने देव आनंद को सुरैया से दूर रहने की हिदायत और पुलिस में शिकायत दर्ज करने की धमकी तक दे डाली. नतीजतन दोनों ने अलग होने का फैसला किया. इसके बाद दोनों ने एक भी फिल्मों में साथ काम नहीं किया और ताउम्र सुरैया ने किसी से शादी नहीं की. बड़े पर्दे पर दोनों की आखिरी फिल्म दो सितारे थी. कहा जाता है कि दोनों के अलग होने के फैसले के बाद सुरैया ने देव आनंद की दी हुई अंगूठी को समुद्र के किनारे बैठकर समुद्र में फेंक दिया. जीनत पर भी कभी देवानंद का दिल आया था. लेकिन यह प्यार एक तरफा निकला जिसकी वजह से देवानंद का दिल टूट गया.


शादी की कल्पना कार्तिक से

देवानंद नेजीनत और सुरैया के इंकार के बाद अपने टूटे दिल को अभिनेत्री कल्पना कार्तिक से जोड़ लिया. कल्पना कार्तिक का असली नाम मोना सिंघा था. वे ईसाई थीं. दोनों ने फिल्म “बाजी” में एक साथ काम किया और इसी फिल्म के दौरान एक-दूसरे से प्रेम करने लगे. साल 1954 में दोनों ने चुपचाप शादी कर ली. बड़े भाई चेतन आनंद तक को इसकी भनक नहीं लगी. काफी दिनों बाद इस बात का खुलासा तब हुआ, जब दोनों पति-पत्नी साथ रहने लगे. देवानंद की दो संतान हैं एक बेटा सुनील आनंद और बेटी देवयानी. बेटा एक फिल्म में आया भी लेकिन चल नहीं सका.


राजनीति में भी रखे कदम

जून, 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब देश में आपातकाल लगाने का एलान किया तो देव आनंद ने फिल्म जगत के अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर उसका पुरजोर विरोध किया था. बाद में जब आपातकाल खत्म हुआ और देश में चुनावों की घोषणा हुई, तो उन्होंने अपने प्रशंसकों के साथ जनता पार्टी के चुनाव प्रचार में भी हिस्सा लिया.


बाद में उन्होंने नेशनल पार्टी ऑफ इंडिया के नाम से एक राजनीतिक दल की भी स्थापना की, लेकिन कुछ समय बाद उसे भंग कर दिया. उसके बाद भले ही वह राजनीतिक रूप से सक्रिय न रहे हों लेकिन समय-समय पर विभिन्न राजनीतिक मसलों पर अपनी बेबाक राय रखते रहे.


देवानंद की सुपरहिट फिल्में

हरे रामा हरे कृष्णा, हीरा पन्ना, देश परदेस, लूटमार, स्वामी दादा, सच्चे का बोलबाला, अव्वल नंबर, हम नौजवान, कालापानी, गाइड, मुनीमजी, दुश्मन, कालाबाजार, सी.आई.डी, पेइंग गेस्ट, गैम्बलर, तेरे घर के सामने.


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