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कहते हैं मौत कभी भी किसी भी रूप में आकर हमारे प्राणों की बलि ले सकती है और इस कथन को हकीकत में बदला 02 दिसंबर, 1984 की उस घटना ने जिसने दुनिया को हिलाकर रख दिया. देश के इतिहास की सबसे दर्दनाक और भयानक घटना जिसने पूरे भारत को हिलाकर रख दिया वह घटी थी भोपाल में.
02 दिसंबर, 1984 को घटित भोपाल गैस त्रासदी भारत के इतिहास में वह काला अध्याय है जिसे शायद ही कभी भुलाया जा सकेगा. भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड प्लांट में 2 दिसंबर को आधी रात में मिथाइल आइसोनेट (एमआईसी) के रिसाव के कारण हजारों की तादाद में लोगों की मृत्यु हो गई. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दुर्घटना के कुछ ही घंटों के भीतर तीन हज़ार लोग मारे गए थे. लेकिन हमेशा की तरह यह सिर्फ सरकारी आंकड़ा था और मरने वाली की संख्या और भी ज्यादा थी.
घोर लापरवाही के कारण गैस कार्बाइड कारखाने से मिथाइल आइसोसायनाइड गैस का रिसाव हुआ था. मिथाइल आइसोसायनाइड के रिसाव ने न सिर्फ फैक्टरी के आसपास की आबादी को अपने चपेट मे लिया था, बल्कि हवा के झोकों के साथ दूर-दूर तक निवास करने वाली आबादी तक अपना कहर फैलाया था. गैस रिसाव से सुरक्षा का इंतजाम तक नहीं था. दो दिन तक फैक्टरी से जहरीली गैसों का रिसाव होता रहा. फैक्टरी के अधिकारी गैस रिसाव को रोकने के इंतजाम करने की जगह खुद भाग खड़े हुए थे. गैस का रिसाव तो कई दिन पहले से ही हो रहा था. फैक्टरी के आसपास रहने वाली आबादी कई दिनों से बैचेनी महसूस कर रही थी. इतना ही नहीं, बल्कि उल्टी और जलन जैसी बीमारी भी घातक तौर पर फैल चुकी थी. उदासीन और लापरवाह कंपनी प्रबंधन ने इस तरह मिथाइल गैस आधारित बीमारी पर गौर ही नहीं किया था.
मिथाइल आइसोसायनाइड गैस की चपेट में आने से करीब 15 हजार लोगों की मौत हुई थी. पांच लाख से अधिक लोग घायल हुए थे. जहरीली गैस के चपेट में आने से सैकड़ों लोगों की बाद में मौत हो गई. यही नहीं, आज भी हजारों पीड़ित ऐसे हैं, जो जहरीली गैस के प्रभाव से मुक्त नहीं हैं. भोपाल गैस कार्बाइड के आसपास की भूमि जहरीली हो गई है.
सबसे बड़ी बात यह है कि भोपाल गैस कांड के बाद में जन्म लेने वाली पीढ़ी भी मिथाइल गैस के प्रभाव से पीड़ित है और उसे कई खतरनाक बीमारियां विरासत में मिली हैं. इस हादसे ने देश को झकझोर कर रख दिया. लेकिन इससे भी दर्दनाक था इस मामले में सरकार का रवैया. यूनियन कार्बाइड के मालिक वारेन एंडरसन को बचाने की सरकार ने पुरजोर कोशिश की. किसी भी अनहोनी से बचने के लिए उसे देश से बाहर जाने का रास्ता दिया गया जिसके बाद से वह कभी भारत के हाथ नहीं लगा.
और तो और न्यायालय ने भी अपने फैसले से उन तमाम लोगों की मौत का मजाक बनाया जिसमें उसने सात दोषियों को दो साल की सजा और एक लाख रुपये से अधिक का जुर्माना लगाया लेकिन सजा सुनाने के कुछ ही देर बाद सभी आरोपियों को जमानत पर रिहा कर दिया गया.
मुआवजे के नाम पर धोखाधड़ी
मुआवजे के नाम पर धोखाधड़ी हुई है. इस धोखाधड़ी में भारत सरकार और मध्य प्रदेश की तत्कालीन सरकार के हाथ काले हैं. यूनियन कार्बाइड कंपनी के साथ सुप्रीम कोर्ट की मध्यस्थता में मुआवजे के लिए एक समझौता हुआ था. समझौते में एक तरह से भोपाल गैस कांड के पीड़ितों के साथ अन्याय ही नहीं हुआ था, बल्कि उनके संघर्ष और भविष्य पर भी नकेल डाली गई थी. जबकि यूनियन कार्बाइड को कानूनी उलझन से मुक्त कराने जैसी शर्त को माना गया था.
दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी और 15 हजार से ज्यादा जानें छीनने वाली व पांच लाख से ज्यादा लोगों को अपने घातक जद में लेने वाली इस नरसंहारक घटना की मुआवजा राशि मात्र 713 करोड़ रुपये. भारत सरकार की अति रुचि और यूनियन गैस कार्बाइड कारपोरेशन के प्रति अतिरिक्त मोह ने गैस पीड़ितों की संभावनाओं का गला घोंट दिया.
सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस नरसंहारक घटना में सैकड़ों लोग ऐसे मारे गए थे, जिनके पास न तो कोई रिहायशी प्रमाण थे और न ही नियमित पते का पंजीकरण था. ऐसे गरीब हताहतों के साथ न्याय नहीं हुआ. उन्हें मुआवजा भी नहीं मिला. सरकारी कामकाज के झंझटों के कारण भी मुआवजे की राशि दुर्बल और असहाय लोगों तक नहीं पहुंची.
देश में ऐसी घटनाओं के प्रति जितनी मानवीय संवेदनाएं होती हैं उतनी सरकारी राहत नहीं मिल पाती. इस घटना ने कई की आंखों को तो गीला किया पर सरकार ने उन आंसुओं को और भी बढ़ा दिया. यह इस देश की हकीकत है कि यहां मौत जिंदगी से सस्ती है. किसी आपदा या घटना में मरने वाले को सरकार चार-पांच लाख देकर अपना दायित्व निभा देती है और यह भूल जाती है कि उस इंसान की जिंदगी उसके घरवालों के लिए कितनी महत्वपूर्ण थी.
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