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हिन्दी संगीत जगत में विशेष स्थान रखने वाले सारंगी वादक उस्ताद सुलतान खान का रविवार 27 नवंबर, 2011 को निधन हो गया. सारंगी के उस्ताद और दिल को छूने वाले ‘पिया बसंती’ व ‘अलबेला सजन आयो रे’ सरीखे गीतों को अपनी आवाज देने वाले सुल्तान खान को हिन्दी संगीत जगत में विशेष सम्मान से देखा जाता है.
राजस्थान के सीकर में जन्मे और जोधपुर घराने से ताल्लुक रखने वाले सुल्तान खान 11 साल की उम्र से ही स्टेज पर प्रस्तुति देने लगे थे. उन्हें देश में सारंगी को पुनर्जीवित करने का श्रेय दिया जाता है. पिता उस्ताद गुलाब खान से संगीत की शुरुआती शिक्षा लेने के बाद उन्होंने इंदौर घराने के शास्त्रीय गायक उस्ताद आमिर खान की शागिर्दी में अपनी कला को निखारा. सुल्तान खान ने भारतीय संगीत के हर बड़े नाम के साथ संगत की. उन्होंने सुर कोकिला लता मंगेशकर, तबला वादक अल्लारक्खा खान व जाकिर हुसैन, बांसुरी वादक हरि प्रसाद चौरसिया और संतूर वादक पंडित शिव कुमार को भी अपनी कला का मुरीद बनाया .
पंडित रविशंकर और मशहूर बैंड ‘द बीटल्स’ के साथ उन्होंने अंतरराष्ट्रीय संगीत कार्यक्रमों में शिरकत की. पॉप क्वीन मैडोना के एल्बम के लिए उन्होंने सारंगी बजाई. उनकी सारंगी ऑस्कर विजेता ‘गांधी’ फिल्म में भी सुनाई दी थी.
गायिका चित्रा के साथ आए ‘पिया बसंती’ एल्बम ने उन्हें युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाया. इस एल्बम ने उन्हें एमटीवी का ‘इंटरनेशनल वीवर्स च्वॉइस अवार्ड’ भी दिलाया. सुल्तान खान के बेटे साबिर खान भी मशहूर सारंगी वादक हैं.
उस्ताद सुलतान खान को हमेशा सांरगी को जीवित करने के और उनकी अनोखी आवाज के लिए जाना जाता रहेगा. आज के समय जब सभी लोग मॉडर्न होने की राह पर चले जा रहे हैं उन्होंने शास्त्रीय और पारंपरिक संगीत को जिंदा रखने में अहम भूमिका निभाई.
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