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हिन्दी सिनेमा में संगीत का इस्तेमाल हमेशा से फिल्म को हिट करवाने के लिए होता रहा है. संगीत का फिल्मों में विशेष रोल है इसीलिए फिल्मकारों और संगीतकारों ने संगीत के साथ हमेशा रचनात्मक करने की कोशिश की है. जहां शुरुआत में बिना बैकग्राउंड म्यूजिक के गाने आते थे वहीं आज पूरी फिल्म में बैकग्राउंड म्यूजिक देखने को मिलता है. लेकिन हिन्दी सिनेमा में एक समय वह भी आया जब लोगों को रॉक और डिस्को की धुनों ने नाचने पर मजबूर कर दिया. यह समय था बप्पी लाहिड़ी का. बप्पी लाहिड़ी हिन्दी सिनेमा के उन पहले इंसानों में से हैं जिन्होंने डिस्को म्यूजिक को गानों में पिरोया और शानदार सफलता हासिल की. हमेशा गहनों और सोने से लदे रहने वाले बप्पी दा अपनी स्टाइल इमेज के लिए भी जाने जाते हैं. बड़े-बड़े चश्मों के साथ ट्रैक-सूट का मिलन बप्पी लाहिड़ी को स्टाइल आइकॉन बनाता है. डिस्को म्यूजिक के शहंशाह बप्पी दा के जन्मदिन पर चलिए जानते हैं उनके जीवन की कुछ विशेष बातें.
बप्पी लाहिड़ी का निजी जीवन
27 नवंबर, 1952 को बप्पी लाहिड़ी का जन्म कोलकाता में हुआ था. वह एक धनाढ्य़ संगीत घराने से ताल्लुक रखते हैं. उनके पिता अपरेश लाहिड़ी एक प्रसिद्ध बंगाली गायक थे. उनकी माता बांसरी लाहिड़ी (Bansari Lahiri) भी बांग्ला संगीतकार थीं. बप्पी दा अपने माता पिता की अकेली संतान हैं.
बचपन से ही उन्होंने विश्वप्रसिद्ध होने के सपने देखना शुरू कर दिया था. तीन साल की उम्र में तबला सीखने के साथ उन्होंने संगीत की शिक्षा लेनी शुरू की. संगीतकार किशोर कुमार और एस. मुखर्जी उनके संबंधी हैं. उन्होंने संगीत अपने माता पिता से ही सीखी और 19 साल की उम्र में पहली बार उन्हें बंगाली फिल्म “दादु” (Daadu) में गाना गाने के लिए चुना गया.
बप्पी लाहिड़ी का व्यक्तित्व
बप्पी लाहिड़ी की बात हो और उनके स्टाइल पर नजर ना जाए ऐसा हो ही नहीं सकता. महंगे और सोने के गहने पहनने वाले बप्पी लाहिड़ी हमेशा रॉकस्टार की लुक में नजर आते हैं. बातचीत के ढंग से भी वह एक ऐसा मिश्रण लगते हैं जिसमें भारतीय रंग रूप के साथ अधिक मात्रा में विदेशी फैशन हो. उनके पहनावे में अधिकतर ट्रैकसूट या कुर्ता पायजामा होता है. इसके साथ ही बप्पी लाहिड़ी अपने धूप के चश्मों को गर्मी हो या सर्दी कभी नहीं छोड़ते.
कॅरियर
हिन्दी फिल्मों में
बप्पी लाहिड़ी 19 साल की उम्र में ही बॉलिवुड में नाम कमाने के लिए मुंबई चले गए. साल 1973 में उन्हें हिन्दी फिल्म “नन्हा शिकारी” में गाना गाने का मौका मिल गया. हालांकि उन्हें बॉलिवुड में असली पहचान 1975 की फिल्म “जख्मी” से मिली. इस फिल्म में उन्होंने मोहम्मद रफी और किशोर कुमार जैसे महान गायकों के साथ गाना गाया. इसके बाद तो जैसे बप्पी दा का गाना सबकी जुबान पर छाने लगा.
इसके बाद दौर आया बप्पी लाहिड़ी और मिथुन चक्रवर्ती की जोड़ी का. इस दोनों की जोड़ी ने बॉलिवुड में ऐसी धूम मचाई कि सब डांस और डिस्को म्यूजिक के दीवाने हो गए. उन्होंने मिलकर डिस्को डांसर, डांस डांस, कसम पैदा करने वाले जैसी फिल्मों को अपने गानों से ही हिट बना दिया.
हिन्दी सिनेमा में बिना हिन्दी से छेड़छाड़ किए बप्पी दा ने संगीत को नई दिशा दी. उन्होंने अपने एलबमों में अशोक कुमार और आशा भोसले की आवाज का बखूबी इस्तेमाल किया. एलिशा चिनॉय और ऊषा उथुप के साथ मिलकर उन्होंने कई हिट नंबर दिए.
हालांकि उन पर कई बार विदेशी धुनों को भी चुराने का आरोप लगा पर उन्होंने आगे बढ़ने पर ही जोर दिया. 1990 के दशक में बप्पी दा फिल्मों से पूरी तरह अलग होकर अपने एलबमों पर ही काम करने लगे थे. लेकिन अब एक बार फिर वह नए जोश और जुनून के साथ लौट चुके हैं जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण है आने वाली फिल्म “द डर्टी पिक्चर” का सुपरहिट गाना ऊ ला ला ऊ ला ला.. यहां हम यह बता दें कि यह फिल्म अभी रिलीज भी नहीं हुई हैं और फिल्म के इस गाने को इंटरनेट पर करोड़ों श्रोताओं द्वारा सुना जा चुका है. जो लोग कहते हैं कि बप्पी लाहिड़ी का समय अब खत्म हो चुका है उनके लिए यह गाना एक करारा जवाब है.
बप्पी दा के कुछ खास गाने
उनके हिट गानों में से कुछ खास निम्न हैं: याद आ रहा है और सुपर डांसर (डिस्को डांसर), बॉम्बे से आया मेरा दोस्त (आप की खातिर), ऐसे जीना भी क्या जीना है (कसम पैदा करने वाले की), प्यार चाहिए मुझे जीने के लिए (मनोकामना), रात बाकी (नमक हलाल), यार बिना चैन कहां रे (साहब), ऊ ला ला ऊ ला ला (द डर्टी पिक्चर)
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