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दीपावली के दो दिन बाद यम द्वितिया के दिन ही चित्रगुप्त की पूजा करने का विधान है. इस दिन कलम और चित्रगुप्त की पूजा की जाती है. चित्रगुप्त को कायस्थ जाति का सृजनकर्ता एवं पूर्व पुरुष माना जाता है.
पौराणिक कथा के अनुसार चित्रगुप्त को ब्रह्मा जी का पुत्र माना जाता है. इस संदर्भ में एक कथा है. कहते हैं कि सृष्टि के रचनाकार ब्रह्मा जी ने सृष्टि के जीवों को प्रसन्नता से स्वीकार कर लिया लेकिन कुछ ही समय बीतने के उपरांत सृष्टि का आकार इतना बढ़ गया कि यमराज घबराकर ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और प्राणियों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखने और उसके अनुसार उन्हें दण्ड अथवा पुरस्कार देने में कठिनाई के संबंध में अपनी व्यथा बताई. यमराज ने अपने लिए योग्य मंत्री की व्यवस्था करने की प्रार्थना की. ब्रह्मा जी को लगा कि यमराज की समस्या उचित है. उन्होंने यमराज को उनकी परेशानी का हल ढूंढ़ने का आश्वासन दिया और समाधि में चले गए.
कहते हैं 11 हजार वर्षों की समाधि के बाद ब्रह्मा जी की काया से एक दिव्य पुरुष की उत्पत्ति हुई. श्यामल वर्ण के इस दिव्य पुरुष के कमल के समान नेत्र थे, कानों में कुण्डल, गले में मुक्तासर, शरीर पर पीताम्बर वस्त्र और हाथ में कलम दवात थी. उत्पन्न पुरुष ने भगवान ब्रह्मा से अपना नाम और कार्य पूछा तो ब्रह्मा जी ने कहा, “तुम मेरी काया से उत्पन्न हुए हो इस कारण तुम्हारी जाति कायस्थ कहलाएगी. और अब तक तुम मेरे चित्त में गुप्त थे अत: तुम्हारा नाम चित्रगुप्त होगा. बगलामुखी और गायत्री मंत्रों की उपासना, जप और पूजन तुम्हें करना है. पूर्व वर्णित चारों वर्णों में तुम्हारा स्थान नहीं है. तुम्हारा वर्ण पांचवां वर्ण है. कलम-दवात ही तुम्हारी जीविका के साधन होंगे. तुम यमलोक में जाकर मनुष्यों के पाप और पुण्य का लेखा तैयार करो.”
इसके बाद वह यमलोक चले गए जहां यमराज ने इन्हें न्यायालय में लेखक का पद दे दिया. वर्तमान समय में कायस्थ जाति के लोग चित्रगुप्त के ही वंशज कहे जाते हैं.
माना जाता है हमारे कर्मों का सारा लेखा जोखा चित्रगुप्त ही बनाते हैं इसलिए चित्रगुप्त की पूजा का विशेष महत्व है.
चित्र साभार: इंटरनेट
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