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69 साल का होने के बाद भी अगर बॉलिवुड में कोई सशक्त रूप से पर्दे पर अभिनेता का किरदार निभाने और दर्शकों को पर्दे तक खींच कर लाने में सफल हो तो उसे शहंशाह ही कहेंगे. और शहंशाह जहां खड़े होते हैं लाइन वहीं से शुरू हो जाती है. यह शहंशाह कोई और नहीं बल्कि अमिताभ बच्चन हैं. अमिताभ बच्चन आज वह नाम हैं जिनके नाम ना सिर्फ सर्वाधिक हिट फिल्में हैं बल्कि छोटे पर्दे पर ही उनकी कामयाबी का पैमाना काफी अधिक है. अमिताभ बच्चन ने 40 सालों से बॉलिवुड में टॉप के कलाकारों सहित अपने परिवार को भी अपने साथ बांध कर रखा. अमिताभ एक अभिनेता के अलावा, एक गायक, निर्माता और सांसद की भूमिका भी निभा चुके हैं.
69 साल के होने के बाद भी अमिताभ बच्चन को बॉलिवुड के व्यस्ततम अभिनेताओं में गिना जाता है. लेकिन कामयाबी का लड्डू अमिताभ बच्चन को कभी आसानी से नहीं मिला. अपने शुरूआती दौर में अमिताभ बच्चन ने भी काफी संघर्ष किया था.
अमिताभ बच्चन का शुरुआती नाम “इंकलाब श्रीवास्तव” था. लेकिन आजादी के बाद उनका नाम उनके पिता की कृतियों के पीछे के नाम बच्चन के साथ अमिताभ बच्चन हो गया.
अमिताभ बच्चन का जीवन
अमिताभ बच्चन प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय “बच्चन” और तेजी बच्चन के बेटे हैं. उनके एक भाई अजिताभ बच्चन हैं. उनका जन्म इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में 11 अक्टूबर, 1942 को हुआ. इलाहाबाद के ज्ञान प्रबोधिनी और ब्वायज हाई स्कूल में पढ़ने के बाद उन्होंने नैनिताल के शेरवुड कॉलेज से उच्च शिक्षा प्राप्त की. इसके बाद किरोड़ीमल कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ समय के लिए कलकत्ता की ‘शो एंड वाल्लेस’ में काम किया. अमिताभ और राजीव गांधी कॉलेज के दिनों में गहरे दोस्त थे और उन्हीं के कहने पर अमिताभ ने राजनीति में कदम रखा था.
आज अमिताभ बच्चन के बेटे अभिषेक बच्चन अपना कॅरियर बनाने की कोशिश कर रहे हैं पर जो सफलता अमिताभ को मिली वह अभिषेक को मिल पानी बहुत मुश्किल है.
शुरुआत में उन्हें भारी आवाज़ और ऊंचे कद के चलते निर्देशकों ने अपनी फिल्मों में लेने से इनकार कर दिया. हालांकि उनकी भारी आवाज़ को पृष्ठभूमि में इस्तेमाल किया गया और उन्होंने रेडियो में भी काम किया.
अमिताभ बच्चन का कॅरियर
अमिताभ ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत 1969 में ‘सात हिन्दुस्तानी’ से की. हालांकि फिल्म कुछ ख़ास कमाल नहीं कर पायी पर अमिताभ को राष्ट्रीय पुरस्कार(नवांगतुक अभिनेता) से सम्मानित किया गया.
लेकिन इस फिल्म के बाद उनके सितारे गर्दिश में जाते दिखे. 1971 में उन्होंने उस समय के सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ ‘आनंद’ में काम किया, हालांकि फिल्म में राजेश खन्ना के होने की वजह से अमिताभ का किरदार दबा हुआ रहा पर उन्हें फिल्मफेयर सह कलाकार का पुरस्कार जरूर मिला. उसके बाद तो असफलता का जो दौर आया वह बेहद खराब रहा. 17 फिल्में करने के बाद भी अमिताभ एक बड़ी सफलता के इंतज़ार में थे. इसी समय 1973 में प्रकाश मेहरा ने उन्हें ‘जंजीर’ फिल्म में काम करने का अवसर दिया. अमिताभ को यह किरदार प्राण के कहने पर मिला. और यह फिल्म उस समय की एक सफल फिल्म बन गई. इस फिल्म से उन्हें ‘एंग्री यंग मैन‘ का नाम मिला. जल्द ही वह बॉलिवुड के शीर्ष कलाकारों में से एक हो गए.
इसके बाद आई दीवार, शोले, त्रिशूल, मुकद्दर का सिकंदर, काला पत्थर और शक्ति जैसी सफल फिल्मों में भी उन्होंने एंग्री यंग मैन की ही भूमिका निभाई. हालांकि “चुपके-चुपके” और “कभी कभी” जैसी फिल्मों में अमिताभ बच्चन की बहुमुखी प्रतिभा भी दिखी. 1978 में आई फिल्म “डॉन” ने अमिताभ बच्चन को बॉलिवुड का बादशाह बना दिया.
1980 से लेकर 1984 तक अमिताभ बच्चन ने “मिस्टर नटवरलाल”, “द ग्रेट गैम्बलर”, “दोस्ताना”, “शान”, कालिया, नसीब, लावारिस, नमक हलाल, शक्ति, सत्ते पे सत्ता, मर्द, शराबी, कुली आदि जैसी कई हिट फिल्में दीं और वह भी लगातार. आलम यह था कि अमिताभ इस दौर की जिस भी फिल्म में नजर आते दर्शक उसे देखने सिनेमाघरों के बाहर लाइन लगा देते.
इसी दौर में अमिताभ का नाम जुड़ा अभिनेत्री रेखा के साथ. अमिताभ और रेखा की जोड़ी का जादू लोगों के सिर पर पूरे शवाब के साथ चढ़ता था. दोनों ने जिस भी फिल्म में एक साथ काम किया वह हिट ही हुई.
लेकिन दोनों की बढ़ती नजदीकियों ने अमिताभ की बसी बसाई गृहस्थी पर आंच ला दी थी नतीजन अमिताभ ने आखिरी बार रेखा के साथ फिल्म “कभी कभी” में काम किया और उसके बाद कभी दोनों किसी सार्वजनिक मंच पर भी एक दूसरे के सामने नहीं आएं.
1982 में कुली के दौरान लगी चोट
1982 में आई उनकी फिल्म “कुली” में एक स्टंट करते हुए उन्हें चोट लग गई थी. इस स्टंट में उन्हें टेबल के ऊपर से जमीन पर कूदना था. वह टेबल की तरफ कूदे और गलती से टेबल के कोने से जा टकराए जिसकी वजह से उन्हें गंभीर चोट लग गई. उन्हें फिल्म बीच में ही छोड़कर अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. उस समय अमिताभ के प्रशंसकों के बीच आलम यह था कि अस्पताल के बाहर घंटों उनके जल्दी स्वस्थ होने की दुआएं देने के लिए लोगों का हुजूम लग रहता था. 1983 में फिल्म जब रिलीज हुई तो एक ब्लॉकबस्टर साबित हुई. अमिताभ की बीमारी की वजह से फिल्म का अंत भी बदल दिया गया था.
अमिताभ का राजनीतिक सफरनामा
1984 में अमिताभ ने अभिनय से कुछ समय के लिए विश्राम ले लिया और अपने पुराने मित्र राजीव गांधी के सहयोग में राजनीति में कूद पड़े. उन्होंने इलाहाबाद लोक सभा सीट से उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री बहुगुणा को आम चुनाव के इतिहास में(68.2%) के मार्जिन से विजय दर्ज करते हुए चुनाव में हराया था. हालांकि इनका राजनैतिक कॅरियर कुछ अवधि के लिए ही था, जिसके तीन साल बाद इन्होंने अपनी राजनैतिक अवधि को पूरा किए बिना त्याग दिया. इस त्यागपत्र के पीछे इनके भाई का बोफोर्स विवाद में अखबार में नाम आना था, जिसके लिए इन्हें अदालत में जाना पड़ा. इस मामले में बच्चन को दोषी नहीं पाया गया.
फिल्मों में वापसी और घोर निराशा का समय
1988 में अमिताभ बच्चन की एक्शनपैक्ड फिल्म “शहंशाह” रिलीज हुई जिसे लोगों ने बहुत पसंद किया पर फिल्म देखकर यह साफ हो गया कि अब अमिताभ में वह जादू नहीं रहा जो पहले था. इसके बाद की कुछ फिल्में फ्लॉप हो गईं. 1990 में आई “अग्निपथ” में निभाया गया डॉन का किरदार आज भी दर्शकों को रोमांचित कर देता है. इस फिल्म के लिए उन्हें पहली बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया. अगले ही साल 1991 में “हम” फिल्म ने फिर उन्हें सफलता की सीढ़ियों पर खड़ा कर दिया. इस फिल्म के लिए उन्हें फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर के अवार्ड से सम्मानित किया गया. 1992 में “खुदा गवाह” की सफलता के बाद अमिताभ ने कुछ समय के लिए फिल्मों से ब्रेक ले लिया.
एबीसीएल और निराशा का दौर
अमिताभ ने 1996 में निर्देशन के क्षेत्र में भी हाथ आजमाने की सोची, लेकिन कई कारणों से उनकी होम प्रोडक्शन कंपनी एबीसीएल का दिवाला निकल गया और अमिताभ पर आर्थिक संकट छाने लगा. तेरे मेरे सपने, मृत्युदाता और मेजर साब जैसी फिल्मों ने एबीसीएल का बैंड बजा डाला. एबीसीएल 1997 में बंगलौर में आयोजित 1996 की मिस वर्ल्ड सौंदर्य प्रतियोगिता का प्रमुख प्रायोजक था और इसके खराब प्रबंधन के कारण इसे करोड़ों रूपए का नुकसान उठाना पड़ा था जिसने अमिताभ को सड़क पर ला खड़ा किया.
हालात बद से बदतर होते देर ना लगी और अपनी शोहरत वापस पाने के लिए अमिताभ बच्चन ने दुबारा संघर्ष शुरू किया. छोटे पर्दे से उन्होंने वापसी का सपना देखना शुरू किया. टीवी पर छोटे छोटे विज्ञापनों में भी उन्होंने दिल से काम करना शुरू किया और एक बार फिर लक्ष्मी उनके दरवाजे पर आ खड़ी हुई. साल 2000 में कौन बनेगा करोड़पति में अपने आप को एक सफल एंकर के तौर पर प्रस्तुत किया. बच्चन ने केबीसी का आयोजन नवंबर 2005 तक किया और इसकी सफलता ने फिल्म की लोकप्रियता के प्रति इनके द्वार फिर से खोल दिए. 2010 और 2011 में भी केबीसी में एंकर की भूमिका अमिताभ ने ही निभाई है.
फिर खुले सफलता के द्वार
लोकप्रियता की ऊंचाई के दिनों में अमिताभ बच्चन की औसत और फ्लॉप फिल्में भी दूसरे हीरो की सफल फिल्मों से ज्यादा बिजनेस करती थीं. शो बिजनेस का पुराना दस्तूर है. यहां जो चलता है, खूब चलता है. अगर कभी रुक या ठहर जाता है, तो फिर उसे कोई नहीं पूछता. अमिताभ बच्चन के कॅरियर में ऐसा दौर भी आया था जब अमिताभ बच्चन नाम से फिल्म इंडस्ट्री को एलर्जी हो गई थी, लेकिन मोहब्बतें और कौन बनेगा करोड़पति के बाद वे फिर केंद्र में आ गए.
साल 2000 में ही अमिताभ बच्चन यश चोपड़ा की फिल्म “मोहब्बतें” में नजर आए. इस फिल्म के लिए उन्हें तीसरी बार सह अभिनेता के फिल्मफेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया. इसके बाद से ही उन्होंने दुबारा सदी का शहंशाह बनकर बॉलिवुड पर राज किया. ब्लैक, पा, बंटी और बबली, सरकार जैसी सफल फिल्मों में अपने अभिनय से वह आज भी हमारा मनोरंजन कर रहे हैं. उम्मीद है अमिताभ बच्चन यूं ही दर्शकों का मनोरंजन करते रहेंगे.
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