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विश्व ओजोन दिवस

Special Days
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धरती पर जीवन को पनपने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा है. इतिहास और भूगोल के अध्ययन से यह साफ है कि धरती पर जीवन की उत्पत्ति के लिए काफी लंबा समय तय करना पड़ा है. लेकिन जो चीज इंसान को कड़ी मेहनत और प्रकृति से फल स्वरूप मिली है उसे आज खुद इंसान ही मिटाने पर लगा हुआ है. लगातार प्रकृति के कार्यों में हस्तक्षेप कर इंसान ने खुद को प्रकृति के सामने ला खड़ा किया है जहां प्रकृति उसका विनाश कर सकती है. जंगलों, वनों की कटाई कर असंतुलन पैदा किया जा रहा है. गाड़ियों ने हवा को प्रदूषित कर कर दिया है तो वहीं उस जल को भी इंसान ने नहीं बख्शा जिसकी वजह से धरती पर जीवन संचालित होता है.


world ozone dayप्रौद्योगिकी के इस युग में इंसान हर उस चीज का हरण कर रहा है जो उसकी प्रगति की राह में रोड़ा बन रही है. इसी तरह इंसान ने अपने आराम और सहूलियत के लिए उस ओजोन परत को भी नष्ट करने की ठान ली है जो उसे सूर्य से निकलने वाली खतरनाक पराबैगनी किरणों से बचाती है. दिनों-दिन बढ़ रही औद्योगिक गतिविधियों के कारण आज हमारे जीवन को बचाने वाली ओजोन परत को खतरा पैदा हो गया है.


सूर्य से निकलने वाली खतरनाक किरणों से ओजोन परत हमें बचाती है, मगर जहरीली गैसों से ओजोन परत में एक छेद हो गया है और अब इस छेद को भरने के प्रयास हो रहे हैं. यह जहरीली गैसें हम इंसानों द्वारा एसी और कूलर जैसे उत्पादों में इस्तेमाल होती हैं. अपना जीवन अधिक से अधिक आरामदायक बनाने के लिए हम दिन ब दिन प्रकृति के साथ जो छेड़छाड़ कर रहे हैं यह उसका नतीजा है.


पिछले दो दशकों से समताप मंडल में ओजोन की मात्रा कम हो रही है. इसका मुख्य कारण रेफ्रिजरेटर व वातानुकूलित उपकरणों में इस्तेमाल होने वाली गैस, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन और हैलोन हैं. यह गैसें ऐरोसोल में तथा फोम की वस्तुओं को फुलाने और आधुनिक अग्निशमन उपकरणों में प्रयोग की जाती हैं. यही नहीं, सुपर सोनिक जेट विमानों से निकलने वाली नाइट्रोजन आक्साइड भी ओजोन की मात्रा को कम करने में मदद करती है. ओजोन की परत विशेष तौर से ध्रुवीय वातावरण में बहुत कम हो गई है. ओजोन परत का एक छिद्र अंटार्कटिका के ऊपर स्थित है .


ozoneआखिर ओजोन है क्या

ओजोन एक हल्के नीले रंग की गैस होती है जो आक्सीजन के तीन परमाणुओं (O3) का यौगिक है. ओजोन परत सामान्यत: धरातल से 10 किलोमीटर से 50 किलोमीटर की ऊंचाई के बीच पाई जाती है. यह गैस सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों के लिए एक अच्छे फिल्टर का काम करती है.


पराबैगनी किरणों से नुकसान

आमतौर पर ये पराबैगनी किरण [अल्ट्रा वायलेट रेडिएशन] सूर्य से पृथ्वी पर आने वाली एक किरण है जिसमें ऊर्जा ज्यादा होती है. यह ऊर्जा ओजोन की परत को नष्ट या पतला कर रही है. इन पराबैगनी किरणों को तीन भागों में बांटा गया है और इसमें से सबसे ज्यादा हानिकारक यूवी-सी 200-280 होती है. ओजोन परत हमें उन किरणों से बचाती है, जिनसे कई तरह की बीमारियां होने का खतरा रहता है. पराबैगनी किरणों [अल्ट्रा वायलेट रेडिएशन] की बढ़ती मात्रा से चर्म कैंसर, मोतियाबिंद के अलावा शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है. यही नहीं, इसका असर जैविक विविधता पर भी पड़ता है और कई फसलें नष्ट हो सकती हैं. इनका असर सूक्ष्म जीवाणुओं पर होता है. इसके अलावा यह समुद्र में छोटे-छोटे पौधों को भी प्रभावित करती जिससे मछलियों व अन्य प्राणियों की मात्रा कम हो सकती है.


विश्व ओजोन दिवस का इतिहास

ओजोन परत के इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए पिछले दो दशक से इसे बचाने के लिए कार्य किए जा रहे हैं. लेकिन 23 जनवरी, 1995 को यूनाइटेड नेशन की आम सभा में पूरे विश्व में इसके प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए 16 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय ओजोन दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित किया गया. उस समय लक्ष्य रखा गया कि पूरे विश्व में 2010 तक ओजोन फ्रेंडली वातावरण बनाया जाए. हालांकि अभी भी लक्ष्य दूर है लेकिन ओजोन परत बचाने की दिशा में विश्व ने उल्लेखनीय कार्य किया है.


ओजोन परत को बचाने की कवायद का ही परिणाम है कि आज बाजार में ओजोन फ्रेंडली फ्रिज, कूलर आदि आ गए हैं. इस परत को बचाने के लिए जरूरी है कि फोम के गद्दों का इस्तेमाल न किया जाए. प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम हो. रूम फ्रेशनर्स व केमिकल परफ्यूम का उपयोग न किया जाए और ओजोन फ्रेंडली रेफ्रीजरेटर, एयर कंडीशन का ही इस्तेमाल किया जाए. इसके अलावा अपने घर की बनावट ओजोन फ्रेंडली तरीके से किया जाए, जिसमें रोशनी, हवा व ऊर्जा के लिए प्राकृतिक स्त्रोतों का प्रयोग हो.


यह धरती हमें एक विरासत के तौर पर मिली है जिसे हमें आने वाली पीढ़ी को भी देना है. हमें ऐसे रास्ते अपनाने चाहिए जिनसे ना सिर्फ हमारा फायदा हो बल्कि उससे हमारी आने वाली पीढ़ी भी इस बेहद खूबसूरत धरती का आनंद ले सके.


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