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मुसलमानों के पवित्र रमजान महीने के बाद अल्लाह द्वारा उनके लिए इनाम के तौर पर ईद दिया गया है. ईद-उल-फितर मुस्लिम समुदाय के लिए हर्षोल्लास का कारण बन कर आता है. ईद का मतलब होता है खुशी, हर्ष और उल्लास. फितरा एक तरह के दान को कहते हैं. इस तरह ईद-उल-फितर का मतलब है दान से मिलने वाली खुशी.
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सेवाइयों में लिपटी मोहब्बत की मिठास का त्यौहार ईद-उल-फितर भूख-प्यास सहन करके एक महीने तक सिर्फ खुदा को याद करने वाले रोजेदारों को अल्लाह का इनाम है. मुसलमानों का सबसे बड़ा त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व न सिर्फ हमारे समाज को जोडने का मजबूत सूत्र है बल्कि यह इस्लाम के प्रेम और सौहार्द भरे संदेश को भी पुरअसर ढंग से फैलाता है.
ईद-उल-फितर मनाने का कारण
रमजान अरबी कैलेंडर का नौवां महीना होता है. और नौवें महीने की समाप्ति के बाद दसवां महीना शवाल का आता है. इसी माह शवाल की प्रथम तिथि को ईद मनाई जाती है. यह त्यौहार रमजान के 29 अथवा 30 रोजे की समाप्ति के उपरान्त मनाया जाता है.
ईद-उल-फितर 2011
इस साल ईद का पवित्र त्यौहार 31 अगस्त को मनाया जा रहा है.
रमजान के महीने में रोजा रखा जाता है जिसके दौरान रोजेदार एक महीने का व्रत रखते हैं और प्रात: से संध्या तक बगैर अन्न और जल ग्रहण किए अल्लाह की इबादत में लगे रहते हैं. यह व्रत बहुत कठिन होता है क्यूंकि इसमें आपको पूरे दिन कुछ नहीं खाना होता है. बस सुबह-सुबह सूर्योदय से पहले सहरी खाई जाती है और इन दिनों कुरान का अतिरिक्त पठन और पाठन करना होता है.
ईद-उल-फितर के नियम
ईद-उल-फितर को मनाने की कुछ शर्ते भी हैं जिसके अनुसार इसे मनाने से पहले फितरा और जकात का निकालना अनिवार्य होता है. फितरा गरीब और असहाय लोगों के लिए दान होता है जिससे वह भी इस पाक खुशी को हासिल कर सकें. फितरे और जकात की अदायगी के बगैर रमजान अधूरा माना जाता है. रमजान में हर सक्षम मुसलमान को अपनी कुल सम्पत्ति के ढाई प्रतिशत हिस्से के बराबर की रकम निकालकर उसे गरीबों में बांटना होता है. इससे समाज के प्रति उसकी जिम्मेदारी का निर्वहन तो होता ही है, साथ ही गरीब रोजेदार भी अल्लाह के इनाम रूपी त्यौहार को मना पाते हैं. व्यापक रूप से देखें तो ईद की वजह से समाज के लगभग हर वर्ग को किसी न किसी तरह से फायदा होता है. चाहे वह वित्तीय लाभ हो या फिर सामाजिक फायदा हो.
ईद-उल-फितर के दिन
ईद के दिन लोग सुबह-सुबह उठकर स्नानादि करके नमाज पढ़ने जाते हैं. जाते समय सफेद कपड़े पहनना और इत्र लगाना शुभ माना जाता है. सफेद रंग सादगी और पवित्रता की निशानी माना जाता है. नमाज पढ़ने से पहले खजूर खाने का भी रिवाज है. नमाज पढ़ने से पहले गरीबों में दान या जकात बांटा जाता है.
नमाज अदा करने के बाद सभी एक-दूसरे से गले मिलते हैं और ईद की बधाई देते हैं. ईद पर मीठी सेवइयां बनाई जाती हैं जिसे खिलाकर लोग अपने रिश्तों की कड़वाहट को खत्म करते हैं. इस दिन “ईदी” देने का भी रिवाज है. हर बड़ा अपने से छोटे को अपनी हैसियत के हिसाब से कुछ रुपए देता है, इसी रकम को ईदी कहते हैं.
ईद-उल-फितर समाज में भाईचारे को बढ़ाता है और भारत जैसे देश में जहां हिंदू-मुस्लिम एक साथ रहते हैं वहां ईद-उल-फितर समाज में एकता बढ़ाने का बहुत अच्छा काम करता है.
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