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आजादी की कीमत वही जानता है जिसने कभी पराधीनता भोगी हो. खुद को कुछ देर के लिए गुलाम समझकर देखिए जिसे बिना आज्ञा अपने घर में भी घूमने की आजादी ना हो और कैसा महसूस होगा जब आपके घर में आपके ऊपर कोई और राज करेगा और आपको सिर्फ उसका आदेश मानना होगा. सोच कर भी कितना कष्टमयी लगता है तो जरा सोचिए जिस देश ने 200 साल किसी की गुलामी सही हो उसके लिए आजादी का क्या मतलब होगा. आजाद भारत के लिए 15 अगस्त सिर्फ एक तारीख ही नहीं बल्कि उस आजादी के जश्न का दिन है जिसके लिए कितने ही वीर जवानों ने वीरगति पाई और कितने महानायकों ने जेलों में दिन बिताए.
भारत का स्वतंत्रता दिवस जिसे हर वर्ष 15 अगस्त को देश भर में हर्ष-उल्लास के साथ मनाया जाता है वह सिर्फ एक त्यौहार ही नहीं हर भारतवासी के लिए एक नई शुरुआत की तरह है.
यह दिन हमें याद दिलाता है कि इसी दिन 1947 को 200 वर्ष से अधिक समय तक ब्रिटिश उपनिवेशवाद के चंगुल से छूट कर एक नए युग की शुरूआत हुई थी. वह 15 अगस्त, 1947 का भाग्यशाली दिन था जब भारत को ब्रिटिश उपनिवेशवाद से स्वतंत्र घोषित किया गया और नियंत्रण की बागडोर देश के नेताओं को सौंप दी गई. भारत द्वारा आजादी पाना उसका भाग्य था, क्योंकि स्वतंत्रता संघर्ष काफी लम्बे समय चला और यह एक थका देने वाला अनुभव था, जिसमें अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने जीवन कुर्बान कर दिए.
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की कहानी
भारत की आजादी का संघर्ष मेरठ के कस्बे में सिपाहियों की बगावत के साथ 1857 में शुरू हुआ. अपने प्राणों को भारत माता पर मंगल पांडे ने न्यौछावर किया और देखते ही देखते यह चिंगारी एक महासंग्राम में बदल गयी जिसमें झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, नाना साहेब, ‘सरफरोशी की तमन्ना’ लिए रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक, चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव आदि देश के लिए शहीद हो गए. तिलक ने ‘स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार’ है का सिंहनाद किया और सुभाष चंद्र बोस ने कहा – तुम मुझे ख़ून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा.
‘अहिंसा’ और ‘असहयोग’ लेकर महात्मा गांधी और ग़ुलामी की जंज़ीरों को तोड़ने के लिए ‘लौह पुरुष’ सरदार पटेल ने जैसे महापुरुषों ने कमर कस ली. 90 वर्षों के लम्बे संघर्ष के बाद 15 अगस्त 1947 को ‘भारत को स्वतंत्रता’ का वरदान मिला. 15 अगस्त भारत का स्वतंत्रता दिवस है.
इस महान स्वतंत्रता संग्राम में ऐसे भी कई गुमनाम सिपाही हैं जिन्होंने अंग्रेजों के मन में भय भर दिया था और वतन की आजादी के लिए अपने प्राणों की चिंता किए बिना आगे बढ़ते रहे.
14 अगस्त, 1947 को सुबह 11.00 बजे संघटक सभा ने भारत की स्वतंत्रता का समारोह आरंभ किया, जिसे अधिकारों का हस्तांतरण किया गया था. जैसे ही मध्यरात्रि की घड़ी आई भारत ने अपनी स्वतंत्रता हासिल की और एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया. यह ऐसी घड़ी थी जब स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने नियति के साथ भेंट यानि ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ नामक अपना प्रसिद्ध भाषण दिया. इसके बाद तिरंगा झण्डा फहराया गया और लाल किले के प्राचीर से राष्ट्रगान गूंज उठा.
राष्ट्रपति द्वारा स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर ‘राष्ट्र को संबोधन’ दिया जाता है. इसके बाद अगले दिन दिल्ली में लाल किले पर तिरंगा झण्डा फहराया जाता है. राज्य स्तरों पर हम विशेष स्वतंत्रता दिवस समारोह देखते हैं, जिसमें झण्डा आरोहण समारोह, सलामी और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. ये आयोजन राज्य की राजधानियों में किए जाते हैं और आम तौर पर उस राज्य के मुख्यमंत्री कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हैं.
आजादी की कीमत : पाकिस्तान
भारत को आजादी की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है जिसका अंदाजा लगाना नामुमकिन है. देश को आजादी बंटवारे के साथ मिली. एक तरफ देश आजाद हुआ तो दूसरी तरफ देश दो हिस्सों में बंट गया. जिस देश में कभी हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई थे वह आज हिन्दुस्तान-पाकिस्तान नामक दो देशों में बंट गए हैं जो आपस में आज तक एक साथ नहीं हो सके हैं. जिन्ना और पं. नेहरु ने अपने-अपने देशों की बागडोर तो थाम ली पर वह उस भीषण नरसंहार को नहीं रोक पाए जो पाकिस्तान से भारत और भारत से पाकिस्तान जाने वाले लोगों के साथ किया गया. मौत का यह सिलसिला आज भी हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की सीमा पर कश्मीर के लिए जारी है. आजादी की लड़ाई में भी इतने शहीद नहीं हुए होंगे जितने अब सीमा पर होने वाली बमबारी और देश में होने वाली आतंकवादी घटनाओं में मारे जाते हैं. शायद ही किसी देश ने आजादी की इतनी बड़ी कीमत चुकाई होगी.
क्या वाकई हम आजाद हो गए हैं ?
एक लड़ाई वह थी जब हमने अंग्रेजों के चुंगल से देश को बचाने के लिए लड़ाई लड़ी थी और आज लगता है देश को भ्रष्टाचार और आतंकवाद से मुक्त कराने के लिए हमें ऐसी ही किसी बड़ी लड़ाई की जरूरत है. देश में दिन-प्रतिदिन फैलती अव्यवस्था को खत्म करने के लिए अब हमारे पास गांधी और सरदार पटेल जैसे महान नेता तो नहीं हैं लेकिन आशाओं के साथ हम स्वर्णिम भारत की कल्पना कर सकते हैं जिसका सपना कभी गांधी जी ने देखा था.
आज देश के नौजवानों में स्वतंत्रता दिवस को लेकर रूचि कम हो रही है जिसकी वजह है कि उन्होंने कभी गुलामी के कटु स्वाद को नहीं चखा. लेकिन जरूरी यह है कि युवा वर्ग देश के राष्ट्रीय दिवस स्वतंत्रता दिवस को गर्व से मनाएं और एक भारतीय होने पर गर्व करें. यह देश उन सभी नामों को शत-शत प्रणाम करता है जिन्होंने हमारे देश को आजाद कराने में मदद की है.
जागरण जंक्शन परिवार की तरफ से आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. जय हिंद, जय भारत.
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