Menu
blogid : 3738 postid : 676

महाराणा प्रताप : वीरता के परिचायक

Special Days
Special Days
  • 1020 Posts
  • 2122 Comments

भारतभूमि सदैव से ही महापुरुषों और वीरों की भूमि रही है. यहां गांधी जैसे शांति के दूतों ने जन्म लिया है तो साथ ही ताकत और साहस के परिचायक महाराणा प्रताप (Maharana Pratap), झांसी की रानी, भगतसिंह जैसे लोगों ने भी जन्म लिया है. यह धरती हमेशा से ही अपने वीर सपूतों पर गर्व करती रही है. ऐसे ही एक वीर सपूत थे महाराणा प्रताप (Maharana Pratap). महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास में वीरता और राष्ट्रीय स्वाभिमान के सूचक हैं. इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये हमेशा ही महाराणा प्रताप का नाम अमर रहा है.


maharana pratapमहाराणा प्रताप (Maharana Pratap) उदयपुर, मेवाड में सिसोदिया राजवंश के राजा थे. एक मान्यता के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म – 9 मई, 1540, राजस्थान, कुम्भलगढ़ में हुआ था. राजस्थान के कुम्भलगढ़ में प्रताप का जन्म महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जीवत कंवर के घर हुआ था.


असफल प्रेमी की भूमिका वाला सफलतम नायक


उन दिनों दिल्ली में सम्राट अकबर का राज्य था जो भारत के सभी राजा-महाराजाओं को अपने अधीन कर मुगल साम्राज्य का ध्वज फहराना चाहता था. मेवाड़ की भूमि को मुगल आधिपत्य से बचाने हेतु महाराणा प्रताप ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक मेवाड़ आजाद नहीं होगा, मैं महलों को छोड़ जंगलों में निवास करूंगा, स्वादिष्ट भोजन को त्याग कंदमूल फलों से ही पेट भरूंगा किन्तु, अकबर का अधिपत्य कभी स्वीकार नहीं करूंगा. 1576 में हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप और अकबर के बीच ऐसा युद्ध हुआ जो पूरे विश्व के लिए आज भी एक मिसाल है. अभूतपूर्व वीरता और मेवाड़ी साहस के चलते मुगल सेना के दांत खट्टे कर दिए और सैकड़ों अकबर के सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया गया.


घर के शेर बाहर हो रहे हैं ढेर


बालक प्रताप जितने वीर थे उतने ही पितृ भक्त भी थे. पिता राणा उदयसिंह अपने कनिष्ठ पुत्र जगमल को बहुत प्यार करते थे. इसी कारण वे उसे राज्य का उत्ताराधिकारी घोषित करना चाहते थे. महाराणा प्रताप ने पिता के इस निर्णय का तनिक भी विरोध नहीं किया. महाराणा चित्तौड़ छोड़कर वनवास चले गए. जंगल में घूमते घूमते महाराणा प्रताप ने काफी दुख झेले लेकिन पितृभक्ति की चाह में उन्होंने उफ तक नहीं किया. पैसे के अभाव में सेना के टूटते हुए मनोबल को पुनर्जीवित करने के लिए दानवीर भामाशाह ने अपना पूरा खजाना समर्पित कर दिया. तो भी, महाराणा प्रताप ने कहा कि सैन्य आवश्यकताओं के अलावा मुझे आपके खजाने की एक पाई भी नहीं चाहिए.


महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) के पास उनका सबसे प्रिय घोड़ा “चेतक” था. हल्दी घाटी के युद्ध में बिना किसी सहायक के प्रताप अपने पराक्रमी चेतक पर सवार हो पहाड़ की ओर चल पड़ा. उसके पीछे दो मुग़ल सैनिक लगे हुए थे, परन्तु चेतक ने प्रताप को बचा लिया. रास्ते में एक पहाड़ी नाला बह रहा था. घायल चेतक फुर्ती से उसे लांघ गया परन्तु मुग़ल उसे पार न कर पाये. चेतक की बहादुरी की गाथाएं आज भी लोग सुनाते हैं.


सम्पूर्ण जीवन युद्ध करके और भयानक कठिनाइयों का सामना करके प्रताप ने जिस तरह से अपना जीवन व्यतीत किया उसकी प्रशंसा इस संसार से मिट न सकेगी.


Read More:

रानी लक्ष्मीबाई: वीरता की अद्भुत मिसाल

कैसे कोई 80 साल की उम्र में वीर योद्धा बन सकता है

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to Lala HarborCancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh