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भारतभूमि पर ऐसे कई वीर हुए हैं जिन्होंने भारत का नाम रोशन किया है और ऐसे ही एक वीर थे वीर विनायक दामोदर सावरकर(Veer Vinayak Damodar Savarkar). युगपुरुष वीर विनायक दामोदर सावरकर (Veer Savarkar) एक हिन्दुत्ववादी, राजनीतिक चिंतक और स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं. अपने इन विचारों को अभिव्यक्त करने में उन्होंने कभी किसी प्रकार का संकोच नहीं किया.
एक क्रांतिकारी होने के साथ-साथ वीर सावरकर (Veer Savarkar) भाषाविद, बुद्धिवादी, कवि, लेखक और ओजस्वी वक़्ता थे. विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को हुआ था. वीर सावरकर का जन्म नासिक के भगूर गांव में हुआ था. उनके पिता दामोदर पंत (Damodar Panth)गांव के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में जाने जाते थे. जब विनायक नौ साल के थे तभी उनकी माता राधाबाई (Radhabai Savarkar) का देहांत हो गया था.
अपनी माता की मौत के बाद बाल विनायक (Veer Savarkar) काफी अकेलापन महसूस करने लगे लेकिन उनके भाइयों ने उन्हें बहुत साथ और प्यार दिया. वीर विनायक (Veer Savarkar) ने सबसे पहले अपने दोस्तों के साथ मित्र मेला नाम के एक ग्रुप की शुरुआत की. इसी दौरान उनकी शादी यमुनाबाई से हुई जिन्होंने उनकी आगे की पढ़ाई में बहुत मदद की.
राजनीति में सक्रिय होने के बाद उन्होंने सर्वप्रथम 1905 में बंग-भंग के बाद विदेशी वस्त्रों की होली जलाई. विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने का यह एक तरीका था.
वीर विनायक(Veer Savarkar) एक प्रखर लेखक भी थे. इंडियन सोशियोलॉजिस्ट’ “Indian Sociologist” , ‘तलवार’,’लंदन टाइम्स'(London Times) जैसी पत्रिकाओं में लेख लिखे. सावरकर भारत के पहले और दुनियां के एकमात्र लेखक थे जिनकी किताब को प्रकाशित होने के पहले ही ब्रिटेन और ब्रिटिश औपनिवेशिक साम्राज्य की सरकारों ने प्रतिबंधित कर दिया था.
वीर विनायक (Veer Savarkar) को कट्टर हिंदुत्ववादी माना जाता था और शायद यही वजह रही कि जब गांधीजी की हत्या हुई तो उन पर भी आरोप लगे कि वह हत्याकांड में शामिल हैं.
अपना सारा जीवन देश को आजाद कराने के लिए समर्पित करने वाले वीर विनायक दामोदर पर कई ऐसे आरोप भी लगे जिनकी वजह से इनकी छवि खराब हुई. गांधीजी की हत्या से तो कोर्ट ने उन्हें मुक्त कर दिया लेकिन इस घटना से साफ हो गया था कि आजाद होने के बाद भी भारत आजाद नहीं हुआ बल्कि पहले दूसरे राज करते थे और राजनीति राज करेगी.
सावरकर एक प्रख्यात समाज सुधारक थे. उनका दृढ़ विश्वास था, कि सामाजिक एवं सार्वजनिक सुधार बराबरी का महत्त्व रखते हैं व एक-दूसरे के पूरक हैं. सावरकर जी की मृत्यु 26 फरवरी, 1966 में मुम्बई में हुई थी.
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