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छोटी उम्र के सपने भी होते हैं सच : श्रेया घोषाल

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सपने वही देखते हैं जिनमें उन सपनों को पाने की ताकत होती है. बचपन में देखे सपने हमेशा बचकाने नहीं होते, कभी-कभी उनमें इतनी ताकत होती है जो आगे का सारा जीवन ही बदल देती है. संगीत के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए आपको बचपन से ही लगन और परिश्रम की जरुरत होती है तभी आगे जाकर मुकाम पाने में आसानी होती है. संगीत के क्षेत्र में आज जो भी बड़े नाम हमारे सामने हैं उन्होंने शुरुआत जीरो से ही की और आज हीरो बने है. श्रेया घोषाल भी उनमें से ही हैं.


12 मार्च 1984 को जन्मी श्रेया घोषाल का जन्म राजस्थान के रावतभाटा में हुआ था. श्रेया घोषाल के पिता भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र इंजीनियर के रूप में भारतीय नाभिकीय ऊर्जा निगम के लिए काम करते हैं, जबकि उनकी मां साहित्य की स्नातकोत्तर छात्रा हैं.


चार साल की उम्र से घोषाल ने हारमोनियम पर अपनी मां के साथ संगीत सीखना शुरु कर दिया था. इसके बाद श्रेया घोषाल के माता-पिता ने उन्हें कोटा में महेशचंद्र शर्मा के पास हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की विधिवत शिक्षा के लिए भेजा.


श्रेया घोषाल ने अपने संगीत के सफर में शुरुआत 1996 में जी टीवी के शो सा रे गा मा में बतौर एक बाल कलाकार भाग लिया और खिताब जीता था. बारह साल की उम्र में ही उन्होंने अपने हुनर को सबके सामने ला खड़ा किया था. सा रे गा मा के मंच पर ही उनकी मुलाकात हुई संगीतकार कल्याणजी भाई (कल्याणजी-आनंदजी की जोड़ी वाले) से जिन्होंने उनके गायन से प्रसन्न होकर दो साल तक संगीत की शिक्षा दी.


इसके बाद श्रेया घोषाल ने मुंबई आकर अपनी आवाज को दुनिया के सामने लाने की सोची. यहीं से उनके प्रोफेशनल कैरियर को जैसे तेज ट्रेक मिल गया. जब श्रेया घोषाल ने सा रे गा मा के दूसरे दौर में भाग लिया तो संजय लीला भंसाली को श्रेया की आवाज अच्छी लगी और उन्होंने श्रेया घोषाल को फिल्म “देवदास” में गाने का मौका दे दिया. श्रेया घोषाल ने संजय लीला भंसाली की देवदास फिल्म में “बैरी पिया” गीत से शुरूआत की थी. श्रेया की मेहनत और किस्मत कनेक्शन ने उन्हें बॉलिवुड की एक बेहतरीन फिल्म में गाने का मौका दिलवा दिया. फिल्म में श्रेया ने इस्माइल दरबार के संगीत निर्देशन में पांच गाने गाए. दुनिया भर के फिल्मी दर्शकों ने ऐश्वर्या राय पर फिल्माया गया, घोषाल का गाना सुना, और बहुत ही जल्द वे बॉलीवुड में अल्का याज्ञनिक, सुनिधि चौहान, साधना सरगम और कविता कृष्णमूर्ति के साथ चोटी की पार्श्व गायिका बन गयीं. इस गीत ने उन्हें उस साल की सर्वश्रेष्ठ गायिका का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार दिलाया. साथ ही उभरती प्रतिभाओं के लिए दिया जानेवाला आर. डी. बर्मन पुरस्कार भी उन्हें उसी पुरस्कार समारोह में दिया गया.


देवदास ने जैसे श्रेया घोषाल की किस्मत ही बदल कर रख दी. लता जी को अपना आदर्श मानने वाली श्रेया घोषाल आज बॉलिवुड  की एक प्रतिष्ठित गायिका हैं और उन्होंने हिंदी, तमिल, तेलुगु, मलयालम, बंगाली, कन्नड, गुजराती, मेइती, मराठी और भोजपुरी समेत विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में गाने रिकॉर्ड किए.


रुमानी गीतों की मल्लिका श्रेया घोषाल को उनकी बेहतरीन आवाज के लिए अब तक चार फिल्मफेयर अवार्ड , चार नेशनल फिल्म अवार्ड, दो साउथ फिल्मफेयर अवार्ड और भी कई अन्य पुरस्कार मिल चुके हैं.


आज कल श्रेया ना सिर्फ फिल्मों में गाना गाती हैं बल्कि जिस टीवी से उनको इतनी शोहरत मिली थी उसके लिए भी कार्य करती हैं. श्रेया कई संगीत रिएलिटी शो की जज हैं. खाने पीने की शौकीन श्रेया घोषाल का मानना है कि उन्हें अभी और मंजिले पानी हैं जिसके लिए मेहनत जरुरी है. संगीत उनका पहला और आखिरी प्रेम है.

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