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अपनी धरती और अपनी संस्कृति से सबको प्यार होता है लेकिन विरले ही होते हैं जो अपनी संस्कृति को ही अपने प्रोफेशन में उतारते हैं. और जो ऐसा करने में सफल होते हैं वह ना सिर्फ बहुत ही किस्मत वाले होते हैं बल्कि उनमें अपनी संस्कृति को बचाकर रखने की ललक होती है. भारतीय संगीत में ऐसी कई फनकार है जो क्षेत्रीय और लोक संस्कृति के बल पर अपने गायन को आगे बढ़ा रही हैं. फाल्गुनी पाठक भी उनमें से ही हैं जिन्होंने अपने लोक गायन की गूंज को दुनिया भर में फैला कर आज इतनी प्रसिद्धी हासिल की जिसकी कोई सोच भी नहीं सकता.
फाल्गुनी पाठक का जन्म 12 मार्च 1964 को हुआ था.मुंबई में रहने के बावजूद राजस्थानी कला और संगीत से प्रेरित होकर उन्होंने अपने संगीत की थीम गरबा रखी और निकल पड़ी राह पर. उनके गीतों से साथ गरबा की धुन सोने पर सुहागे का काम करती है.
1988 में अपने प्रोफेशनल कैरियर की शुरुआत करने वाली फाल्गुनी पाठक का पहला ही एलबम बहुत हिट हो गया था. याद पिया की आई के नाम से आया यह एलबम दर्शकों को ना सिर्फ नाचने पर मजबूर करता था बल्कि गीत का संगीत रुह को छू जाता था.
फाल्गुनी पाठक को इस एलबम के बाद कई ऑफर मिले खासकर प्रेमगीत गाने के लिए. उन्होंने हर मौके को सही से भुनाया और गुजराती रस में डुबाकर कई गीतों को आम जनता के दिलों में बसा दिया.
आज भी फाल्गुनी पाठक का पहला प्यार गुजरात और गुजराती गरबा ही है. उनका हर गीत गरबे पर नाचने पर मजबूर करता है. नवरात्र आते ही उनके शो की डिमांड एकदम से बढ़ जाती है.
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