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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उग्र विचारधारा और क्रांतिकारियों का विशेष योगदान रहा है. भारतभूमि पर कई वीर सपुतों ने जन्म लिया जिन्होंने अंग्रेजों से लोहा लिया. दामोदर विनायक सावरकर भी उन्हीं क्रांतिकारियों में से थे जो ईंट का जवाब पत्थर से देना चाहते थे.
विनायक दामोदर सावरकर भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे. आज उनकी पुण्यतिथि है. विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को हुआ था. उनके पिता दामोदरपंत गाँव के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में जाने जाते थे. जब विनायक नौ साल के थे तभी उनकी माता राधाबाई का देहांत हो गया था. विनायक दामोदर सावरकर, 20वीं शताब्दी के सबसे बड़े हिन्दूवादी थे. दामोदर विनायक स्वदेशी और हिंदुत्व के भी कट्टर समर्थक थे. सावरकर को आज के समय के हिंदूवादी राजनीतिक दलों का आदर्श भी माना जाता है.
सावरकर की क्रांतिकारी गतिविधियाँ भारत और ब्रिटेन में अध्ययन के दौरान शुरू हुईं. वे इंडिया हाउस से जुड़े थे. उन्होंने अभिनव भारत सोसायटी समेत अनेक छात्र संगठनों की स्थापना की थी. 1940 ई. में वीर सावरकर ने पूना में ‘अभिनव भारती’ नामक एक ऐसे क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य आवश्यकता पड़ने पर बल-प्रयोग द्वारा स्वतंत्रता प्राप्त करना था. आज़ादी के वास्ते काम करने के लिए उन्होंने एक गुप्त सोसायटी बनाई थी, जो ‘मित्र मेला’ के नाम से जानी गई.
वीर सावरकर न सिर्फ़ एक क्रांतिकारी थे बल्कि एक भाषाविद , बुद्धिवादी , कवि , लेखक और ओजस्वी वक़्ता थे. सावरकर ने ही सर्वप्रथम विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर उनकी होली जलाई थी. सावरकर भारत के पहले और दुनिया के एकमात्र लेखक थे जिनकी किताब को प्रकाशित होने के पहले ही ब्रिटिश और ब्रिटिशसाम्राज्यकी सरकारों ने प्रतिबंधित कर दिया था
हालांकि इतने महान क्रांतिकारी का जीवन हमेशा संघर्षों के बीच रहा. 1948 ई. में महात्मा गांधी की हत्या में उनका हाथ होने का संदेह किया गया. इतनी मुश्क़िलों के बाद भी वे झुके नहीं और उनका देशप्रेम का जज़्बा बरकरार रहा और अदालत को उन्हें तमाम आरोपों से मुक्त कर बरी करना पड़ा. किसी क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी के लिए बहुत शर्मिदंगी की बात थी कि उसके ऊपर अपने ही देश के सेनानी को मारने का आरोप लगे. खैर सत्ता की चाह में तुच्छ लोगों के मंसुबे कभी कामयाब नहीं हुए और सावरकर जी की छवि आज भी स्वच्छा और एक बेहतरीन स्वतंत्रता सेनानी की है.
सावरकर एक प्रख्यात समाज सुधारक थे. उनका दृढ़ विश्वास था, कि सामाजिक एवं सार्वजनिक सुधार बराबरी का महत्त्व रखते हैं व एक दूसरे के पूरक हैं. सावरकर जी की मृत्यु 26 फ़रवरी, 1966 में मुम्बई में हुई थी. आज वीर सावकर के जीवन से प्रेरित होकर उनपर कई फिल्में बन चुकी हैं.
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