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पर्व त्यौहार का सीजन एक बार फिर शुरु हो गया है. मौसम की नई बहार लेकर लोहड़ी ने दस्तक दे दी है. पंजाब की शान में चार चांद लगाने वाला यह त्योहार अब भारतवर्ष का एक अहम त्योहार बन चुका है. मौज-मस्ती और जिन्दगी के हर पल को जी भर के जीने की कला को प्रदर्शित करने वाला यह त्योहार मकर-संक्रान्ति से एक दिन पहले मनाया जाता है. लोहड़ी में पंजाब की संस्कृति की असली पहचान मिलती है.
पंजाब में गेहूं की फसल अक्टूबर में बोई जाती है और मार्च में काटी जाती है. लोहडी पर्व तक यह पता चल जाता है कि फसल कैसी होगी, इसलिए लोहड़ी के समय लोग उत्साह से भरे रहते हैं. इस त्यौहार की रात्रि को सभी लोग अपने घरों के बाहर व आंगन में इकट्ठे होकर मिलजुल कर अग्नि प्रज्वलित करते हैं तथा उसमे तिल, मूंगफली, फूल, मखाने आदि डालकर इस पर्व को अत्यधिक जोश व उल्लास के साथ मनाते हुए नजर आते हैं. श्रद्धा व विश्वास के प्रतीक इस त्यौहार को आसाम मे बिहू, केरल में पोंगल तथा उतर प्रदेश व बिहार में मकर संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है.
इस पर्व की एक और खासियत है और वह है नृत्य. नृत्य पंजाब की संस्कृति का एक अहम हिस्सा है और किसी पर्व या त्यौहार के मौके पर तो पंजाबी पूरे शबाब पर होते हैं. लोहड़ी के दिन लोग खूब भांगडा करते हैं और शाम होते ही सूखी लकडियां जलाकर नाचते-गाते हैं. लोहड़ी को लेकर युवाओं में कुछ अधिक ही उत्साह रहता है. यह त्योहार नवविवाहितों और छोटे बच्चों के लिए भी विशेष महत्व रखता है. लोहड़ी की संध्या में जलती लकड़ियों के सामने नवविवाहित जोड़े अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय व शान्तिपूर्ण बनाये रखने की कामना करते हैं.
लोहड़ी के दौरान सूर्य मकर राशि से उत्तर की ओर आ जाता है. आज लोहड़ी उत्तर भारत के साथ पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है और किसी भी जगह इसके उत्साह में कोई कमी नहीं आती. लोहड़ी को लोग एकता का भी प्रतीक भी मानते हैं.
लोहडी के दिन कुछ खास लोकगीत बहुत गाए जाते हैं जैसे
देह माई लोहड़ी
जीवे तेरी जोड़ी
तेरे कोठे ऊपर मोर
रब्ब पुत्तर देवे होर
साल नूं फेर आवां॥
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