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आज विश्व भ्रष्टाचार निरोध दिवस है. जगह-जगह भ्रष्टाचार विरोधी वक्तव्य दिए जा रहे हैं और इस बुराई को निर्मूल कर देने की कसमें खायी जा रही हैं. लेकिन सही बात तो ये है ऐसी कसमें खाने वाले भी जानते हैं कि ये सिर्फ रस्मी प्रक्रिया है और हकीकत में ऐसा कुछ भी नहीं होना जाना है.भ्रष्टाचार एक नैतिक आचरण के रूप में आज पूरे विश्व में हर जगह फैला हुआ है फिर चाहे वह विकासशील देश हों या विकसित देश. फर्क है तो बस यह कि विकासशील देशों पर भ्रष्टाचार का ज्यादा असर देखने को मिलता है. एक आम आदमी से लेकर ऊंचे स्तर के सरकारी आदमी तक सब इस भ्रष्टाचार का हिस्सा कब और कैसे बन जाते हैं यह पता ही नहीं चलता. भ्रष्टाचार एक दीमक की तरह राष्ट्र के आंतरिक विकास को खा जाता है.
विश्व स्तर पर भ्रष्टाचार की पैठ काफी गहरी है लेकिन भारत में भी भ्रष्टाचार अब सिस्टम का हिस्सा बन गया है. भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, कामचोरी और जालसाजी इतना ज्यादा प्रभावी हो चुकी है कि अब हम भ्रष्टाचार को सिस्टम का अभिन्न अंग मानने लगे हैं.
हम अक्सर भ्रष्टाचार को आर्थिक दृष्टिकोण से जोड़ कर देखते हैं. जबकि भ्रष्टाचार का रुप तो और भी व्यापक होता है. कामचोरी कर अपने कर्तव्य से मुंह मोड़ना, सरकारी पद का दुरुपयोग आदि सभी भ्रष्टाचार के ही रुप हैं.
भारत इस समय बुरी तरह से भ्रष्टाचार के जाल में फंसा हुआ है. मधु कोड़ा का घोटाला, राजा का टेलीकॉम घोटाला, आदर्श सोसायटी घोटाले के साथ कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले में देश का इतना ज्यादा धन और सपंदा नष्ट हुए जिससे न जाने कितने विकास के कार्य हो जाते.
भ्रष्टाचार का ही नतीजा है कि आज एक आम आदमी का सरकारी तंत्र से विश्वास खत्म हो चुका है. पुलिस, कानून, न्याय प्रणाली आदि तो ऐसे महकमे बन चुके हैं जहां भ्रष्टाचार का बोलबाला है.
भ्रष्टाचार न सिर्फ देश की आर्थिक स्थिति को नुकसान पहुंचाता है बल्कि वह देश की पूरी समाजिक व्यवस्था पर भी अपना असर छोड़ता है. भ्रष्टाचार से लिप्त देश ठीक उस लकड़ी की तरह होता है जो ऊपर से तो चमकता है लेकिन अंदर से बिलकुल खोखला होता है. आज सब कह रहे हैं भारत विकास कर रहा है, इंडिया शाइनिंग के नारे बुलंद हो रहे हैं. लेकिन हकीकत यह भी है कि यहां भूखमरी और कुपोषण से मरने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है और आज भी समाज का एक तबका जीने के लिए दो वक्त की रोटी जुटा पाने में असमर्थ है.
आज भ्रष्टाचार निरोध दिवस पर यूं तो पूरे विश्व में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई जाएगी लेकिन सवाल यह है कि पूरे सिस्टम में फैल चुके इस भ्रष्टाचार को खत्म कैसे किया जाए. अगर एक आम आदमी चाहे तो क्या वह भ्रष्टाचार के बिना आगे बढ़ सकता है? व्हिसल ब्लोइंग जैसी योजनाओं का फेल होना हमारे देश में व्याप्त भ्रष्टाचार की पोल खोलता है. वैसे भ्रष्टाचार को खत्म करने में अगर मीडिया और आम आदमी साथ-साथ काम करें तो यह असंभव सा दिखने वाला काम संभव भी हो सकता है.
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